Monday, December 23, 2013

फिल्म समीक्षा 'धूम ३'

फिल्म समीक्षा 
'धूम ३'         स्टार : साढ़े चार
अश्वनी राय 
'धूम ३' का एक संवाद 'व्यक्ति कुछ को तोड़ता है, ताकि अपने अंदर कुछ टूटे हुए को जोड़ सके' पूरी फिल्म का सार इस एक वाक्य में व्यक्त कर देता है। फिल्म में सभी कलाकारों की इंट्री उनके चरित्रों के स्वभावानुसार लाजवाब तरीके से होती है। एक हृदयविदारक चीख के दृश्यांतर के साथ आमिर खान की इंट्री पर्दे के साथ-साथ दर्शकों के दिलो दिमाग में भी जगह बना लेती है। 
कहानी 'द वेस्टर्न बैंक ऑफ शिकागो' के  दुर्व्यवहार से आत्महत्या कर चुके इकबाल (जैकी श्राप)के बेटे साहिर (आमिर खान) द्वारा बैंक से बदला लेने की प्रक्रियाओं के साथ आगे बढ़ती है । साहिर बैंक लूटने के बाद वहां का सबकुछ अस्त-व्यस्त कर 'तेरी ऐसी की तैसी' लिख चला जाता है। लुटेरे के हिंदी में संदेश छोड़े जानेके कारण शिकागो पुलिस भारतीय पुलिस जय दीक्षित (अभिषेक बच्चन) और अली(आदित्य चोपड़ा)की सेवा लेती है। लेकिन प्रारंभिक असफलताओं से इन्हें इस मुहिम से बाहर कर दिया जाता है, जिसे जय अपनी इमेज के प्रति एक चुनौती के रूप में लेता है और अंतत: इन्हें सामने लाने में सफल होता हैं। 
इत्ती सी कहानी के दर्शकों को पौने तीन घंटे तक बांधे रखने में सफल होने के राज हैं बेहतरीन पटकथा, रोमांचकारी एक्शन, रुला देने वाले इमोशन, मनमोहक लोकेशन, नयनाभिरामी सिनेमेटोग्राफी और शानदार अभिनय एवं निर्देशन।इस क्रम में फिल्म कभी दिलचस्प, तो कभी गंभीर पड़ावों से गुजरते हुए स्वप्न लोक से सर्कस में पहुंचती है, जहां आलिया (कैटरीना कैफ) और साहिर की अद्वितीय प्रस्तुति का जादू हरएक को अपना मुरीद बना देता है। फिल्म के अच्छे गानों  में चार चांद लगाने का काम करता है आमिर और कैटरीना का डांस। संभव है कैटरीना को सबसे खूबसूरत लुक में दिखाये जाने वाली फिल्मों में 'धूम-३' का जिक्र किया जाये।
फिल्म का एक बेहद रोमांचक हिस्सा है रहस्यमयी बाइक, जो परिस्थिति के अनुसार अपना आकार और काम बदलती रहती है।  यदि कुछ खिंचे से लगते भागती बाइक के सीन को थोड़ा छोटा कर कैटरीना संग रोमांस के सीन डाले गये होते तो शायद कुछ और अच्छा लगता । संवाद दिल को छूने वाले हैं। प्रारंभिग अंश के संवाद 'हाथ नहीं छोडऩा, साथ नहीं छोडऩाÓको अंतिम भाग के दृश्य के साथ पुन: डालना काफी असरकारक दिखता है। साहिर का जय से कहना ' समर को बचा लो, वो काफी मासूम है' आंखों में आंसू ला देगा। कलाकारों में आमिर ने दोहरे चरित्र को जिस तरह से जिया है, उसे देखकर लगता है यह केवल आमिर ही ऐसा कर सकते हैं। अभिषेक बच्चन भी अपनी गंभीर चरित्र के साथ एकाकार दिखते है। फिल्म में अगर अली नहीं होता, तो शायद 'धूम-३' एक बेहद गंभीर फिल्म बनकर रह जाती । अली हास्य का पुट लाने में बिल्कुल सफल रहा है। कैटरीना को जिस काम के लिए लिया गया है, उसमें उन्होंने आशातीत दिया है। 

Thursday, December 19, 2013

फंस गए केजरीवाल

कांग्रेस-भाजपा सहित सभी दलों की मुश्किलें बढ़ाने वाले आप पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल खुद मुश्किल में नजर आ रहे है। दिल्ली में नायक बन कर उभरे केजरीवाल की हालत अब साप-छछूंदर वाली हो गई है। दिल्ली में जिस प्रकार से अप्रत्याशित परिणाम आए उसकी उम्मीद शायद केजरीवाल को भी नहीं थी। ये अलग बात है कि सर्वेक्षणों पर होने वाली बहस के दौरान योगेन्द्र यादव जरूर इस प्रकार के दावे करते नजर आते थे। खैर चुनाव परिणाम तो आ गए हैं और ऐसे आए कि दिल्ली में सरकार बनना ही असंभव सा लगने लगा है। भाजपा द्वारा खरीद-फरोख्त की उम्मीद लगाए केजरीवाल को निराशा हाथ लगी और भाजपा ने सरकार बनाने की जिम्मेदारी आप पार्टी के कंधे पर डाल दी। हमेशा मुखर विरोधी के रूप में दिखने वाली आप पार्टी बहुमत न होने का बहाना बना कर लागातार विपक्ष में बैठना चाहती थी। परन्तु उसकी योजना को मटियामेट करते हुए कांग्रेस ने आप पार्टी को सरकार बनाने हेतु बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा कर एक फिर से केजरीवाल को शूल भरे सिंहासन के पास पहुंचा दिया। पर केजरीवाल यहां भी कहां मानने वाले थे उन्होंने अपनी 18 शर्तों की एक लंबी लिस्ट भाजपा एवं कांग्रेस को भेज दिया। इससे भाजपा को कोई लेना-देना नहीं था अत: उन्होंने इसका कोई जबाब नहीं दिया और न ही निकट भविष्य में देने की संभावना है। परन्तु कांग्रेस के मंझे हुए राजनीतिक खिलाड.ी अपनी लुटिया डुबोने वाले केजरीवाल को यूं ही कहा छोड.ने वाले थे सो उन्होंने ने केजरीवाल के पत्र के जबाब में 16 शर्तें मानने एवं 2 दो शर्तों पर सहयोग करने का आश्वासन पत्र लिख भेजा। अब एक बार फिर गेंद केजरीवाल के पाले में है और अब देखना है कि केजरीवाल का अगल कदम क्या होता है? वैसे बहुमत न होने के बहाने के फेल हो जाने के बाद केजरीवाल अब जनता की राय लेने के बाद सरकार बनाने के विषय में राज्यपाल से मिलने की बात कह रहे है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि केजरीवाल ने अपने चुनावी एजेंडे में जनता से कई सारे वादे कर रखे हैं, जिन्हे पूरा कर पाना असंभव सा है, वहीं अल्प बहुमत की स्थिति में उन्हे और भी परेशानियों का सामना करना पड. सकता है। यह बात कांगे्रस भी बहुत अच्छी तरह से समझ रही है। यही कारण है कि कांग्रेस केजरीवाल को सत्तासीन करना चाह रही है। आप पार्टी के सरकार बनाने से कांग्रेस को एक साथ कई फायदें होंगे। अगर आप सरकार बनाती है, तो कांग्रेस के एजेंडे का सबसे प्रमुख बिंदु साम्प्रादायिक ताकतों (भाजपा) को सत्ता से दूर रखना अपने आप पूरा हो जाएगा। इसके साथ ही वे दिल्लीवासियों को एक बार फिर चुनाव से बचाने का श्रेय लेने में सफल रहेंगे। फिलहाल तो कांग्रेस जिस तरह से केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए आतुर नज़र आ रही है उससे तो सिर्फ एक बात दिख रही है कि चुनावी मैदान में केजरीवाल से मात खा चुकी कांग्रेस उसे राजनीतिक तरीके से पराजित करने के मूड में है। यह बात केजरीवाल को भी समझ में जरूर आ रही है। इसलिए केजरीवाल ने अपने बचाव के लिए आम जनता से सलाह लेने की आड. लेकर फिर अपने आप को सुरक्षित करने में लगे है और अगर इस बीच राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति शासन के लिए भेजा गया आग्रह सवीकार हो जाता है, तो केजरीवाल को नया बहाना मिल जाएगा कि हमें विचार-विमर्श का मौका ही नहीं मिला। परन्तु केजरीवाल यह आंकलन भी फेल होता दिख रहा है क्योकि गृहमंत्री सुशिल कुमार शिंदे ने यह साफ कर दिया है कि केंद्र सरकार दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने में कोई जल्दबाजी नहीं करेगी। अब देखना यह है कि केजरीवाल का अगला पैंतरा क्या होता है वे इस राजनीतिक चक्रव्यूह के अर्जुन साबित होते हैं या फिर अभिमन्यु?
अजीत राय
मो.-09323778226
17.12.2013

Sunday, November 17, 2013

  इस हफ्ते
 www.pratahkal.com

 के फ़िल्म पेज पर
मशहूर जैन संत सौभाग्यमुनि के
मुम्बई प्रवास के समापन पर
गोरेगाव मेवाड़ भवन में मैंने लिया
 उनका साक्षात्कार www.pratahkal.com में

Wednesday, October 23, 2013

प्रातःकाल हिंदी दैनिक में प्रकाशित

Sunday, September 29, 2013

संगीतकार में शायरी सेंस जरूरी - दिलीप सेन 

Monday, August 19, 2013

वंस अपान अ टाइम ..., विधा बुरा मान जाएगी


'नाम बता दिया, तो पहचान बुरा मान जाएगी', ये कह दिया, तो वो बुरा मान जाएगा जैसे संवादों की बहुलता के बीच शायद इस बात पर चिंतन नहीं किया गया कि यदि फिल्म में नाटक के तत्वों का अतिक्रमण कराया गया, तो फिल्म विधा बुरा मान जाएगी। एक के बाद एक आती पंच लाइनों के बाउंसर को कोई कब तक झेलेगा। मन उचाट होना स्वाभाविक है।
मिलन लुथरिया निर्देशित कथित रूप से गैंगस्टर फिल्म 'वंस अपान ए टाइम इन मुंबई दोबाराÓ के क्लाइमेक्स में प्यार की कच्ची खिचड़ी से पूरा जायका खराब होना ही था, हो भी गया। फिल्म में कुछ भी परवान चढ़ता नहीं दिखता। न ही गैंगों की शातिराना साजिशें और न ही रुहानी जज्बात। कहानी मुंबई के अपराध जगत में छाये दुबई में रहने वाले शोएब(अक्षय कुमार) के मुंबई में एक गुंडे रावल (महेश मांजरेकर) को मारने के लिए मुंबई आने और उसके गुर्गे असलम (इमरान खान) के इर्द गिर्द बुनी गई है। जेस्मिन (सोनाक्षी सिन्हा) के रूप में एक कोण प्यार का भी है, जिसके छोर डॉन शोएब और कारिंदे असलम से मिलकर दोनों के बीच संघर्ष को जन्म देते हैं। गाने केवल सुनने में ही अच्छे लगते हैं। प्यार और गुस्सा दोनों में इमरान खान के चेहरे का एक ही भाव दर्शकों को खटक सकता है। अक्षय कुमार अच्छे हैं, लेकिन उनके पल्ले पड़े अतिरिक्त संवाद उन्हें बहुरुपिया बनाते हैं। सोनाक्षी का वही रूप, वही अंदाज है, जैसा दर्शक उनकी पिछली फिल्मों में देख चुके हैं।  

Sunday, August 11, 2013

तर्कहीन 'चेन्नई एक्सप्रेस'


प्रातःकाल में प्रकाशित इस फिल्म की समीक्षा. 
यदि २५ साल का कोई युवक ४ साल के बच्चे जैसी इच्छा जताते अपने पिता से कहे, 'पापा आप घोड़ा बनिये, मुझे सवारी करनी है, तो निश्चित ही आप उसे पागल समझेंगे। ऐसा ही कुछ नजारा दिखता है रोहित शेट्टी निर्देशित फिल्म 'चेन्नई एक्सप्रेस' में,जिसमें ४० साल का राहुल (शाहरुख खान)टीनेजर जैसा अल्हड़पन दिखाते मौजमस्ती के लिए हर हाल में दोस्तों संग गोवा जाने के लिए बेकरार है। सवाल मस्ती और उम्र के बीच पैमाना मानने का नहीं है। बल्कि वे परिस्थितियां हैं, जिनके बीच अधेड़पन की ओर बढ़ते कदमों से बचकानी जिद्द झलकती है।
 राहुल अपनी दादी को झांसा देने दादा जी की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए उनकी अस्थियां रामेश्वरम में प्रवाहित करने मुंबई से चेन्नई एक्सप्रेसपकड़ कल्याण में उतर जाने की योजना बनाता है, लेकिन कल्याण में उतर नहीं पाता। अगर हम मान लें कि मौजमस्ती पसंद राहुल में किसी की भावनाओं के प्रतिसंवेदनशीलता का अभाव है, तो अगले ही पल उसमें इतनी दरियादिली कहां से आ गई कि वह एक-एक करके मीना (दीपिका पादुकोण)और उसका पीछा करते उसके चचेरे भाइयों को छूटती गाड़ी पकड़वाने में सहयोग देते खुद उतरना ही भूल गया। और हां वह पागल भी नहीं है, क्योंकि उसे इस बात का पूरा अहसास है कि दादा-दादी के प्यार ने उसे कभी अपने मां-बाप की कमी नहीं महसूस होने दी। ऐसे में आपका दिमाग चकरा जाएगा, लेकिन आप इस राहुल की एक निश्चित परिभाषा नहीं दे पाएंगे।
कहानी के नाम पर दबंग पिता द्वारा अपनी मर्जी के खिलाफ शादी करा देने के डर से भागी मीनाकी मदद में आये राहुल के मुसीबतों में फंसने, सकुशल निकलने और दोनों में प्यार होने की बकवास है।फिल्म में दीपिका के लिए अधिकांश तमिल भाषा के संवाद बोलने और उससे अपने चेहरे के भाव-भंगिमा का सामंजस्य बिठाने जैसीकुछ चुनौतियां जरूर हैं, जिसमें वह सफल भी दिखती हैं। हास्य के लिए शाहरूख खान की हिट फिल्मों के संदर्भ का सहारा नये काम के प्रतिआत्मविश्वास की कमी को ही दिखाता है। ट्रेलर के दौरान बेहद प्रसिद्ध हुए संवाद 'कहां से खरीदी है ऐसी बकवास डिक्शनरी' फिल्म के बीच एक अच्छे संवाद के लोभमें थोपा गया संवाद लगता है। पूरी फिल्म में देखने लायक कुछ बेहद सुंदर लोकेशंसही हैं, जो दिल को बरबस ही लुभा लेते हैं। वर्ना दर्शकों के लिए तमिल भाषा की बहुलता के बीच पहेली बूझने जैसी स्थित है। एक -दो गाने अच्छे हैं।          

Sunday, August 4, 2013

ओछी नहीं अच्छी फिल्म है 'बी.ए. पास'


 'बी.ए. पास' एक ऐसी कहानी है, जिसमें दो बहनों सहित प्रतिकूल परिस्थितियों के सैलाब में फंसा एक युवा जिस सहारे का आलंबन लेता है, वही आलंबन उसकी जिंदगी को सैलाब से निकाल भयंकर तूफान के हवाले कर देता है । अगर एक वाक्य में फिल्म का मूल्यांकन करें तो इसका प्लॉट 'बुरे काम का बुरा नतीजा' की अवधारणा है। 
निर्देशक अजय बहल की ' बी.ए. पास' सेंसर बोर्ड से वयस्कों के लिए निर्धारित है। ऐसी फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन को हमारे समाज में घटिया श्रेणी में रखा जाता है। किन्तु यह फिल्म एक साथ कई सामाजिक पहलुओं को बड़ी शिद्दत से उजागर करती है। अपने माता-पिता के निधन के बाद बी.ए. का छात्र मुकेश(शादाब कमल)दो बहनों के साथ अपनी बुआ के घर रहता है, जहां उसके हिस्से घरेलू काम और फुफेरे भाई के ताने ही आते हैं । आर्थिक तंगी के कारण दोनों बहनों को सरकारी आश्रम में भेज दिया जाता है। मुकेश की बुआ के घर किटी पार्टी में आयी सारिका (शिल्पा शुक्ला) मुकेश को बहाने से अपने घर बुलाती है और उसको अपने असंतुष्ट वैवाहिक संबंधों का विकल्प बना लेती है। मुकेश की जरूरत के पैमाने समझ सारिका मुकेश को अपनी सहेलियों के लिए उपलब्ध रहने का प्रस्ताव देती है, जिसे न चाहते हुए भी वह स्वीकार कर लेता है और धीरे-२ वह पुरुष वेश्या बन जाता है। आगे सारिका के पति द्वारा मुकेश को अपने पत्नी के साथ रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद उसकी जिंदगी में आये भूचाल से दर-दर भटकने की कहानी है। फिल्म का अंत बेहद असरकारक है,जिसमें वार्डन से परेशान आश्रम छोड़ भाई के यहां आती बहनों के फोन और पीछा करती पुलिस के साइरन के शोर के बीच मुकेश अपनी जिंदगी की आवाज को हमेशा के लिए शांत करने का रास्ता चुन लेता है। 
प्रारंभ से अंत तक फिल्म एक घटना से दूसरी घटना में एक चेन की तरह परस्पर जुड़ी हुई आगे बढ़ती है, जिससे दर्शक घटनाओं के साथ चुपचाप बहते चले जाते हैं। यहां तक कि कई कामुक दृश्य होने के बावजूद भी थियेटर में कभी सीटी बजने की आवाज नहीं आती। क्योंकि वे सीन मौजमस्ती से ज्यादा एक बेबस की मजबूरी लगते हैं। बिना गीत की इस फिल्म में शादाब ने हालात के मारों का सफलतापूर्वक प्रतिनिधित्व किया है, तो शिल्पा शुक्ला ने इतने बोल्ड पात्र में अपनी अदाओं से कई आयाम दिये हैं, जिसमें कभी बिंदासपन, तो कभी समझदारी का बढिय़ा सामंजस्य झलकता है।         
  

Thursday, May 23, 2013

जवानी


जिस उम्र की फितरत है इतिहास बनाना
जिस उम्र के करतब का बनता है तराना
उसे जोश, जवानी या जूनून कह के पुकारो
उसकी खुदी से बनता संवरता है ज़माना .
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बिलकुल अलग अंदाज अलग बात हमारी
दिन का उजाला रहे या रात अंधियारी
बस एक बार हमको आजमाके देख लो
खुद ही जन जाओगे औकात हमारी .

Monday, May 20, 2013

विरह का बादल बहा दे काजल

विरह का बादल बहा दे काजल
पलकों की छतरी लगा दो ना
तरसे नयनवा मोरे सजनवा
आकर रूप दिखा दो ना
रूत बसंती आँख में सावन
तुम बिन सूना सूना आँगन
चंचल हवाएं लचकती डाली
भंवरा चूमे आली आली
दर्दे जवां में ऐसी फिजा में
आओ या मुझको बुला लो ना
रात कटे आँखों में हम दम
भाये ना भोर का भीगा मौसम
आस लगाये सबसे लडूंगी
सपने मिलन की मैं बूनूंगी
कोई हँसे ना कुछ भी कहे ना
आकर रीति निभा दो 

Friday, May 17, 2013

पल भर की आज उनसे मुलाकात हो गयी

पल भर की आज उनसे मुलाकात हो गयी
जो न चाहते थे करना वही बात हो गयी .

शिकवे शिकायतों से क्या फायदा है अब
आसूं से लड़ते- लड़ते लब की मात हो गयी .

यौवन के पहले मोड़ पर ये क्या हो गया
कुछ पग ही तो चले थे क्यों रात हो गयी .

रिश्तों का दर्द मेरे दामन में भर गए
घुट-घुट के अब तो जीना कायनात हो गयी .

क्या दर्द है लगन का कैसे किसे बताऊँ
मेरा ख्वाब मेरी खातिर हवालात हो गयी . 

Saturday, March 9, 2013

बोया पेड़ बबूल का....?

प्रातःकाल दैनिक में प्रकाशित मेरा यह समसामयिक लेख

प्रातःकाल दैनिक में प्रकाशित मेरा यह समसामयिक लेख

Saturday, February 16, 2013

क्या स्व'छ दिखता किचन कीटाणुमुक्त भी है ?

 क्या आपका साफ सुथरा दिख रहा किचन स्वास्थ्य की दृष्टि से भी स्व'छ है ? बिल्कुल नहीं, आपका किचन केवल ऊपरी तौर पर साफ है, ना कि पूरी तरह से कीटाणुओं से मुक्त। यह खुलासा 12 फरवरी को मुंबई में आयोजित 'किचन की सफाई और स्वास्थ्य अध्ययनÓ विषयक प्रेस कांफ्रेंस में इंडियन मेडिकल अकादमी ने किया।
अकादमी के 500 डॉक्टरों ने मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, कोलकता, बंगलौर, हैदराबाद और पुणे में सर्वेक्षण कर पाया कि 87 प्रतिशत गृहिणियों ने केवल गंदगी, धूल, घी और तेल की सफाई को ही पर्याप्त माना, जबकि 90 प्रतिशत ने प्रत्यक्ष रूप से दिख रहे साफ किचन को ही स्वास्थ्य की दृष्टि से भी स्व'छ माना। केवल 13 प्रतिशत ने महसूस किया कि किचन से कीटाणु और जीवाणुओं की सफाई महत्वपूर्ण है । इसके विपरीत 100 प्रतिशत डॉक्टरोंने किचन में प्रत्यक्ष दिख रही सफाई को अल्प स्व'छता ठहराते हुए स्वास्थ्य विज्ञान की दृष्टि से अस्व'छ बताया । बकौल डॉक्टर प्रीतैश कौल (सलाहकार इंडियन मेडिकल अकादमी ), '' आम भारतीयों के बीच रसोई घर की सफाई के संदर्भमेंप्राथमिकता विभिन्न प्रकार की बीमारियां उत्पन्न करने वाले कीटाणुओं से मुक्ति पाने के बजाय प्रत्यक्ष दिखती सफाई से जुड़ी है ।ÓÓ
इसके अलावा बाथरूम की सफाई 2 प्रतिशतने दैनिक, 18 प्रतिशतने द्विसप्ताहिक, 36 प्रतिशतने सप्ताहिक, 40 प्रतिशतने पाक्षिक और 4 प्रतिशतने मासिक अंतराल पर करना बताया । जबकि रसोई घर की सफाई के संदर्भ में 0 प्रतिशतदैनिक, 0 प्रतिशतद्विसप्ताहिक, 1 प्रतिशतसप्ताहिक, 8 प्रतिशतपाक्षिक और 14 प्रतिशतने माना कि मासिक आधार पर की जानी चाहिए। गौरतलब है कि सर्वेक्षण में लिविंग रूम और बेडरूम की सफाई की आवृत्ति सबसे ज्यादा पायी गयी, उनका मानना था कि यह क्षेत्र अधिक निरीक्षण वाला होता है ।
जनरल मेडिकल के एम.डी. डॉ. वेंक्टेश्वर कहते हैं कि काफी संख्या में लोग यह मानते हैं कि बाहर खाने से आंतों के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। उनमें कुछ तथ्य यह भी है कि यदि स्वयं के खाना पकाने के स्थान को कीटाणुमुक्त नहीं किया गया, तो अपना किचन भी अस्वस्थता का कारण बन सकता है। सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि किचन से जुड़े उपकरणों की तुलना में बेसिन, मोरी आदि की सफाई कम की जाती है। इसके अलावा अधिकांश भारतीय बर्तन, किचेन स्लैब्स, टावेल आदि की सफाई के लिए डिटर्जेंट पावडर, बार्स, लिक्विड और सादे पानी का उपयोग करते हैं, लेकिन जीवाणुरोधी प्रयोगकर्ताओं का अनुपात केवल 5प्रतिशत से 8 प्रतिशत के बीच है। जबकि डाक्टरों ने जीवाणुरोधी बार और लिक्विड का प्रयोग करने का सलाह दिया है । सर्वे में डॉक्टरों ने बताया है कि बर्तन साफ करने के लिए प्रयुक्त होने वाला कपड़ा यदि अ'छी तरह से विसंक्रमित नहीं है, तो बर्तन भी दूषित हो जाएंगे । सर्वे दल के डॉक्टरों ने संक्रमण फैलाव के प्रमुख कारणों में किचन और उससे संबंधित उपकरणों सहित अस्व'छ हाथ और दूषित कपड़ों के प्रयोग को बताया है।