Monday, February 24, 2014

फिल्म समीक्षा : हाइवे



हाईवे की समीक्षा लिखते अनिर्णय की स्थिति आ गई है कि पाठकों को घटना में लडख़ड़ाहट का हवाला दूं या हृदयविदारक सच्चाई से रू-ब-रू होने की सलाह। इम्तियाज अली निर्देशित यह फिल्म टुकड़ों में समाज के कईबेहद संवेदनशील व्यवहारिक पहलुओं को उजागर करती है। फिल्म का मुख्य तत्व अभिजात्य वर्ग के दिखावटी सभ्यता का खोखलापन है, जिससे परेशान होकर उस परिवार की लड़की घर से भागती है। लेकिन इस क्रम में इसका ताना बाना बिखर गया है। कुछ संवाद 'गागर में सागरÓ की उक्ति को चरितार्थ करते हैं। जैसे- 'जहां से तुम मुझे ले आये हो, वहां लौटना नहीं चाहती और जहां ले जाना चाहते हो, वहां पहुंचना नहीं चाहतीÓ,  ' एक गोली दो जान लेती है। जिस पर चलती है और जिससे चलती है, दोनों कीÓ ,  'अच्छे से बात करनाÓ अपने अंदर बहुत विस्तृत व्याख्या लिये हुए हैं। 
अमीर एमके त्रिपाठी की बेटी वीरा त्रिपाठी (आलिया भट्ट)की शादी होने वाली है। शादी की तैयारियों के बीच खुली हवा में कुछ क्षण बिताने के लिए अपने मंगेतर से जिद कर रात को हाइवे पर निकलती है, जहां से महावीर भाटी (रणदीप हूड़ा)अपने गैंग के साथ उसका अपहरण कर लेता है। वीरा की पहचान जान अपहरणकर्ता उसके राजनीतिक-आर्थिक रूप से ताकतवर पिता से बचने के लिए एक जगह से दूसरी जगह भागता है। भौतिक सुविधाओं में रहने वाली वीरा को विशुद्ध प्रकृतिकी आबो हवा काफी रास आती है और वह इस सफर को लुत्फ के रूप में लेने लगती है। अपहरणकर्ता महावीर भाटी अब उसे हमराह नजर आता है। दूसरी तरफ महावीर की बेरूखी का बर्फ वीरा की निश्छलता से पिघलती है।  
फिल्म खासकर लड़कियों के पालन-पोषण और उनकी सुरक्षा पर प्रकाश डालते यौन शोषण के मामलों के सबसे बड़े सुरक्षा कवच 'किसी से कुछ ना कहनाÓ को नंगा करती है। जब वीरा सबके सामने अपने ही चाचा द्वारा अपने यौन शोषण की व्यथा सुनाती है। 'हाइवेÓ का सबसे मजबूत पक्ष कलाकारों का अभिनय और इसकी सिनेमेटोग्राफी है। उन्मुक्तता और आक्रोश के मनोभावों को व्यक्त करतेआलिया भट्ट और हृदय परिवर्तन के दृश्यों में रणदीप हूड़ा काफी प्रभावित करते हैं। सिनेमेटोग्राफी इतनी सुंदर है कि फिल्म देखते स्क्रीन भी कुछ बड़ी लगने लगता है। गीत-संगीत विषय को गति देते हैं। 

Monday, February 17, 2014

gunday

प्रातःकाल में प्रकाशित