Friday, July 31, 2015

'दृश्यम' : कानून बनाम भावना


सस्पेंस फिल्मों में अक्सर किसी हत्या या मुख्य घटना का पर्दाफाश अंत में होता है। कथा विस्तार में दर्शक अंदाजा लगाते रहते हैं। लेकिन 'दृश्यम' इसके ठीक उलट चलती है। इसमें मुख्य घटना आई.जी. मीरा देखमुख (तब्बू) के इकलौते पुत्र की हत्या से दर्शक पहले ही परिचित हो जाते हैं। लेकिन दिलचस्पी का कारण बनती है उस हत्या के आरोप से अपनी बेटी को बचाने की जूस्तजू करते पिता की तरकीबें। फिल्म की सबसे बड़ी ताकत इसकी कहानी है। मूल रूप से मलयालम में बनी 'दृश्यम' को डायरेक्टर निशिकांत कामत ने इसी नाम से हिंदी में बनाया है। पूरी कहानी विजय सालगांवकर(अजय) के एक वाक्य में वर्णित हो जाती है, जहां वो अपनी पत्नी से कहता है, ' कोई अपने परिवार के बिना जी नहीं सकता । इसके लिए दुनिया उसे चाहे खुदगर्ज कहे ।'
अजय देवगन को गंभीर रोल में देखना हमेशा अच्छा लगता है। अजय की आंखें इसमें अहम भूमिका निभाती हैं। उनकी आंखों से सादगी, बेचारगी और आक्रोश की अभिव्यक्ति काफी तीव्र होती है। बतौर कलाकार अजय की दाद देनी पड़ेगी कि पिछले कुछ सालों से केवल एक्शन और कॉमेडी करता हीरो कैसे एक चौथी फेल गंवार के व्यक्तित्व से अपनी बॉडी लैंग्वेज को एकाकार कर लेता है। तब्बू प्रशासनिक दायित्व के बीच एक मां की पीड़ा को जब तब दर्शा गयी हैं। अजय की बीवी और बेटी की भूमिका में श्रेया सरन और इशिता दत्ता ने भय के साये की जिंदगी को पर्दे पर इस तरह जिया है कि विषयवस्तु का असर और गाढ़ा हो गया है। रजत कपूर के हिस्से संवाद बहुत कम हैं, लेकिन कुछ गलत न हो जाय की चिंता में कभी एक-दो शब्दों में , तो कभी मूक अभिव्यक्ति और अंतिम सीन में बेटे के बाबत अजय देवगन से उनकी कातर अपील सहानुभूति बटोरती है। 
फिल्म में कुछ खटकने की बात करें तो मध्यांतर का इंतजार कुछ लंबा लगता है। यहां थोड़ा संपादन कर दिया गया होता तो अच्छा होता। दूसरे एक भावनात्मक फिल्म के संवाद और दृश्य जितने हृदय स्पर्शी होने चाहिए, उसकी कमी है। पूरी फिल्म में केवल एक सीन ऐसा आता है, जो एक पिता के कथ्य ' तुम लोगों का कुछ होने नहीं दूंगा' को चित्रित होते दिखाता है। जहां दिल से वाह निकल जाती है। वो सीन है विजय सालगांवकर के घर पहली बार आती पुलिस का। जब विजय की बेटी पुलिस को देख रुआंसा हो जाती है, लेकिन पुलिस बेटी से रू-ब-रू होती है, उसके पहले विजय पुलिस के समक्ष आ जाता है। संवादों में एक जगह बड़ी चूक दिखती है, जब विजय अपनी बेटी के सामने ही पत्नी से कहता है 'मेरी इस्टेमिना तो रात में ही खत्म हो गयी । '  इसमें विरोधाभास दिखता है। जिस आदमी को आप इतना दरियादिल दिखाते हैं, जो लावारिश पड़ी लड़की को घर लाकर गोद ले लेता है, वो भला कैसेअपनी उसी जवान लड़की के सामने ऐसी बात कह सकता है। पृष्ठभूमि में बजते एक-गाने पात्रों की मन:स्थिति को तो बयां करते हैं, लेकिन ज्यादा  प्रभावशाली नहीं हैं। अन्य पात्रों की चयन भी काबिले तारिफ है।

 स्टार : तीन 



Monday, July 27, 2015

मैं कमर्शियल हीरोइन हूं : ऋतुपर्णा सेनगुप्ता

बंगला फिल्मों की बेहद लोकप्रिय अभिनेत्री, जिसे परिभाषित करते हम प्रतिभा और खूबसूरती का संगम कह सकते हैं। हम बात कर रहे हैं सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त कर चुकी ऋतुपर्णा सेनगुप्ता की। उनके जिवंत अभिनय का ही कमाल है कि बंगला और हिंदी फिल्मों में उन्हें ग्लैमरस और पैरलल दोनों तरह की फिल्मों के ऑफर हमेशा आते रहे। मुलाकात के दौरान उन्होंने रील रोल का रियल जीवन में प्रभाव, इमेज, ऑडियंस के प्रति अपनी भावनायें और हिंदी फिल्मों की जर्नी के बाबत कई बातें शेयर की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश-


क्या 'बाहुबली' की रिकॉर्ड सफलता के बाद अब राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय फिल्मों को गंभीरता से लिया जाएगा ?
- ये तो होना ही चाहिए। क्योंकि इंडियन सिनेमा का मतलब केवल हिंदी सिनेमा नहीं हो सकता। इंडियन सिनेमा के अंदर सभी भारतीय भाषाओं की फिल्में आ जाती हैं। हर क्षेत्र की अपनी संस्कृति है। जितना हम एक दूसरे की संस्कृति को जान सकेंगे, उतना ही देश के लिए अच्छा रहेगा। इससे भारतीय कला समृद्धि होगी। सबको समान रूप से देखना चाहिए। क्योंकि हर क्षेत्र में अच्छा काम हो रहा है। अच्छे कलाकार और अच्छे डायरेक्टर हैं। इसलिए रिजनल सिनेमा या उनसे जुड़े लोगों को कमतर आंकना सही नहीं होगा।

आप पैरलल फिल्में ज्यादा करती हैं। आपको नहीं लगता कि एक ग्लैमरस अभिनेत्री को कमर्शियल सक्सेस का हिस्सा होना जरूरी है?
-मैं निश्चित रूप से कमर्शियल हीरोइन हूं। कमर्शियल सिनेमा की प्रोडक्ट हूं। लेकिन मेरा जो किरदार होता है, वो केवल कमर्शियल की सीमा में बंधा नहीं रहता, बल्कि उससे आगे बढ़कर दर्शकों से रिलेट करता है। दूसरे डायरेक्टर मेरी काबिलियत पर भरोसा करते यह अपेक्षा करते हैं कि मैं किरदार को एक अलग लेबल पर ले जाऊं। मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं कि मुझे कमर्शियल फिल्में ज्यादा करनी चाहिए।

आप हिंदी भाषी दर्शकों में भी जितनी पहचानी जाती है, हिंदी फिल्मों में उस स्तर का आपका काम नहीं दिखता। क्या बंगला फिल्मों जितनी हिंदी फिल्मों को लेकर समर्पण में कमी रही ?
-इसके कई कारण हैं। एक तो मैं हमेशा बंगला फिल्मों ज्यादा बिजी रही हूं। सो इधर ध्यान कुछ कम रहा। लेकिन यहां बहुत कुछ एक्वेशन की भी बात है। कई डायरेक्टर होते हैं, जिनकी एक्टर-एक्ट्रेस के साथ टीम होती है। उनकी प्राथमिकता उन्हीं के साथ काम करने की होती है। मैं अभी तक उस तरह की टीम का हिस्सा नहीं बनी हूं। मैं भी सोचती हूं कि बंगाला फिल्मों में जो मेरा प्रोफाइल है, नाम है और जो स्तर है। वैसा ही मुकाम यहां भी हो। लेकिन आप ही बताइये हिंदी में मुझे इस तरह के रोल नहीं मिलेंगे, तो कैसे मैं कर पाऊंगी।
आप अपने को खूबसूरत बनाये रखने के बारे में ज्यादा सोचती हैं या अपने व्यक्तित्व के बारे में ?
- व्यक्तित्व मेरे लिए ज्यादा मायने रखता है। क्योंकि हम लोगों की पब्लिक में एक अलग ही इमेज होती है। कई बार हम उदाहरण बनते हैं। मेरा मोटो ये है कि ऑडियंस के जहन में यादगार मौजूदगी हो। मुझे लगता है कि इतने सारे मेरे फैन हैं, उनके प्रति मेरी रिस्पॉसबिटी बनती है कि मेरे अंदर जो जुनून है, आत्मविश्वास है और मेरी जो पर्सनॉलिटी है, वो मैं हर लड़की मैं पैदा करने में एक कारक बनूं। दूसरी बात जो आपने सौंदर्य की पूछी, तो वो कायम रखना ही पड़ता है। क्योंकि ये हमारी इंडस्ट्री के लिए जरूरी है। इसकी अहमियत को नकारा नहीं जा सकता । दर्शक हमें स्क्रीन पर देखने आते हैं।
क्या इसको लेकर कभी दबाव महसूस हुआ?
- मेरे लिए ये दबाव नहीं, बल्कि हकीकत है। अगर किसी पब्लिक स्पेस पर मेरे पास आकर ऑटोग्राफ लेने, साथ में फोटो खिंचाने की बात कहते हैं, तो मुझे अच्छा ही लगता है। क्योंकि यही तो मेरी कमायी है। ये लोग ही तो हैं, जो मुझे प्यार करते हैं। इन्हीं के रिश्ते से हमारा वजूद है। जिस दिन ये रिश्ता कायम नहीं रहा, हम कुछ नहीं रहेंगे। हां कभी बहुत अधिक भीड़ हो जाने पर सिक्यूरिटी प्राब्लम हो जाती है।
क्या कला और संवेदनशीलता को एक दूसरे का पूरक मानती हैं ?
- हां, संवेदनशीलता से कलाकार की क् वालिटी बढ़ती है। इस दिशा में आगे बढऩे से नयी दिशा मिलती है। दूसरों की भावनाएं समझने की क्षमता आती है। देखिये हम कलाकारों की जिंदगी एक समय के बाद मैकेनिकल हो जाती है। एक रूटीन में बंध जाती है। कैमरे के सामने ये करो, वो करो, हमें मैकेनिकली लोगों के साथ काम करना पड़ता है, जिनकी आदतें हमें अच्छी नहीं लगती, उनके साथ भी बातें करनी पड़ती हैं। ऐसे में सहजता और संवेदनशीलता जैसे तत्व एक कलाकार के लिए जरूरी हो जाते हैं।
गूगल पर आपका नाम सर्च करते ही कुछ कामुक वीडियो आ जाते हैं। क्या कभी आपको लगा कि आपके पति इसे लेकर असहज महसूस कर रहे हैं?

-मेरे पति मुझसे बोल चुके हैं कि देखो यू ट्यूब पर तुम्हारे कैसे-२ वीडियो आते हैं। हमारा बेटा भी बड़ा हो रहा है। तो मैंने उनसे कहा, ''मेरे ऐसे काम भी हैं, जिसके लिए मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार सहित कई बड़े पुरस्कार मिल चुके हैं। लेकिन वो लोग यू ट्यूब पर पहले उसको नहीं डाले। ये सब टेस्ट ऑफ आडियंस के पैमाने पर चल रहा है ना कि टेस्ट ऑफ आट्र्स पर। इस बारे मैं मैं अपने १० वर्षीय बेटे से भी बात कर चुकी हूं।
क्या आप सुचित्रा सेन की बायोपिक में काम कर रही हैं?
उनकी जीवनी से थोड़ी बहुत मिलती एक फिल्म कर रही हूं। लेकिन  यह पूरी तरह से उनकी बायोपिक नहीं है। लेकिन अगर मुझे उनकी बायोपिक फिल्म में काम करने का मौका मिले,तो मैं जरूर करूंगी। क्योंकि सुचित्रा सेन मेरी ऑल टाइम फेवरिट हैं। 

Tuesday, July 14, 2015