tag:blogger.com,1999:blog-61552092093591661562024-02-10T00:44:39.789-08:00आस पासAshwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.comBlogger70125tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-61966153991169213142024-01-02T01:39:00.000-08:002024-01-02T01:39:54.786-08:00<p><b><span style="color: red;"> पराक्रमी हिन्दुओं को भूले-भटके समझते हैं कांग्रेसी- वीर सावरकर</span></b></p><p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhFdYfSquCUZWpSx07Rntsi6OSiHSIpHh75yrKUmn4B4BhJgVXQ-91QijVwNZwn03ee0XMF6QpsqL2UuwirXQdM-Rr5HsNNyEeToyCHUPey1QRz4xgYt1bju26X4G-vG6Yeon5EK-yd6mbsmToNZRDnK_Rrs9Tfx2spM2UBTql6BRbgx3LlletiR_pOkP78" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img alt="" data-original-height="1364" data-original-width="1270" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhFdYfSquCUZWpSx07Rntsi6OSiHSIpHh75yrKUmn4B4BhJgVXQ-91QijVwNZwn03ee0XMF6QpsqL2UuwirXQdM-Rr5HsNNyEeToyCHUPey1QRz4xgYt1bju26X4G-vG6Yeon5EK-yd6mbsmToNZRDnK_Rrs9Tfx2spM2UBTql6BRbgx3LlletiR_pOkP78" width="223" /></a></div><br />06 जनवरी को स्वातंत्र्यवीर सावरकर का मुक्ति शताब्दी दिवस है। वी.डी. सावरकर भारत की आजादी की लड़ाई के एक ऐसे हस्ताक्षर हैं, जिन्होंने पराधीनता की रात में स्वाभिमान की ज्योति जलाई। वीर सावरकर के साहस ने स्वतंत्रता की लड़ाई को एक नई दिशा दे दी। सावरकर ही वो पहले नेता थे, जिन्होंने भारत का लक्ष्य पूर्ण राजनैतिक स्वतंत्रता बताने का साहस दिखाया और इसकी प्राप्ति के लिए आंदोलन भी छेड़ा। उनके अदम्य साहस के कारण ही लोगों ने उनके नाम के साथ वीर की उपाधि जोड़ दी। वीर सावरकर एक निष्ठावान स्वतंत्रता सेनानी, कुशल राजनीतिज्ञ और विद्वान लेखक थे। हिन्दू राष्ट्रवाद के वे प्रमुख जननायक थे। राजनीति और हिन्दुत्व के बाबत वे अपनी राय बेलाग- लपेट व्यक्त करते थे। उनके कुछ ऐसे ही विचार यहां प्रस्तुत हैं-<p></p><p><br /></p><p><span style="color: #2b00fe;"><b>हिंदू प्रतिनिधि न चुनने की भूल प्राण घातक बनी</b></span></p><p>यथार्थ स्थिति का चित्रण करते वीर सावरकर ने कहा था, ''संपूर्ण देश में मुसलमानों के हित रक्षार्थ दंगे-फसाद हुए किंतु उसका प्रतिकार करने के लिए एक भी हिंदू आगे नहीं आया। उसी प्रकार हिंदू प्रतिनिधि न चुनने की यह भूल हिंदुओं के लिए प्राण घातक बनी। उदाहरण के लिए पंजाब और बंगाल के मुसलिम मंत्रियों के कृत्य देखिए। वे सरेआम भरे बाजार मुसलमानों का पक्ष लेकर हिंदुओं को तंग करने की धमकियाँ दे रहे हैं। इसके विपरीत संयुक्त प्रदेश (वर्तमान उत्तर प्रदेश) के कांग्रेसी हिंदू मंत्री हिंदुओं की बात नहीं सुनते। कांग्रेस के प्रतिनिधियों को सरेआम यह कहने में भी लज्जा आती है कि हम हिंदू हैं। इतना ही नहीं, स्वयं को हिंदू कहलाना वे अराष्ट्रीय समझते हैं। यदि वे प्रामाणिक रूप से ऐसा सोचते हैं तो हमारा यही कहना है कि वे चुनाव के समय भी हिंदू मतदाताओं के पास हिंदू होने के नाते से वोट न माँगें। इस इच्छुक को-जो चुनाव के पूर्व स्वयं को हिंदू कहलाता है और निर्वाचित होने पर अपना हिंदुत्व नकारता है ।''</p><p><br /></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">पराक्रमी हिन्दुओं को भूले-भटके समझते हैं कांग्रेसी</span></b></p><p>हिंदू सभा, आर्यसमाज, हिंदू संघटन जैसे शब्द भी कांग्रेसियों को तिरस्करणीय लगते हैं। वे कहते हैं कि आर्यसमाज के कारण ही मुसलमान चिढ़ते हैं। वे शिवाजी, राणा प्रताप तथा अन्य पराक्रमी हिंदू देशभक्तों को भूले-भटके समझते हैं। और कहते हैं कि मुल्ला तथा मौलवियों ने मुसलमानी शब्दों का प्रभाव वृद्धिंगत करके हिंदुस्थानी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। ये मंत्री नागरी लिपि का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि मुसलमानों को वह अप्रिय है। मुसलमानी भावना का आदर करने के लिए उन्होंने 'वंदेमातरम्' राष्ट्रगीत काट-छाँट दिया और हिंदुओं की भावनाओं को कुचल डाला। इस प्रकार हिंदू मतदाताओं द्वारा निर्वाचित कांग्रेसी प्रतिनिधि हिंदू मतदाताओं की भावनाएँ पैरों तले रौंदकर जिन्ना, हक प्रभृतियों को आश्वस्त कर रहे हैं कि वे गोवधबंदी कदापि नहीं करेंगे। </p><p><br /></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">कांग्रेस की दुष्ट प्रवृति से रक्षा का उपाय</span></b></p><p>कांग्रेस की तुष्टिकरण का समाधान बताते उन्होंने कहा, ''कांग्रेस की इस दुष्ट प्रवृत्ति से रक्षा करने का एक उपाय है। वह यह कि हिंदू उन्हें अपना वोट न दें और अपने प्रतिनिधि के रूप में उन्हें निर्वाचित न करें। इसके विपरीत जो प्रकट रूप में एक संघटित पक्ष के रूप में हिंदू हित की सुरक्षा का आश्वासन देते हैं उस हिंदू महासभा इच्छुकों को अपने वोट दें। कांग्रेस में कुछ लोग भले हैं परंतु उन लोगों की भलाई पर गौर न करते हुए हम कांग्रेस की यह हिंदू विघातक नीति देखें जिससे वे बँधे हुए हैं और उससे हिंदू हित की रक्षा के लिए हिंदू सभा को मत दें।''</p><p><br /></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">हिन्दू ही कांग्रेस को नीचे लाएंगे</span></b></p><p>वीर सावरकर की दूरदर्शिता ही थी जब उन्होंने कहा कि हिंदू सभा सदस्यों को एक बात बताता हूँ। इस चुनाव में भले ही आपको सफलता न मिले तथापि धीरज न खोते हुए अगले चुनाव में लड़ने की तैयारी करें ताकि अगले चुनाव में वे हिंदू मंत्रिमंडल बना सकेंगे इसमें मुझे रत्ती भर भी संदेह नहीं। हिंदू मतदाताओं ने ही कांग्रेस को सत्ताधीश बनाया है। परंतु कांग्रेस द्वारा हिंदुओं का विश्वासघात करने से हिंदू ही उसे नीचे खींचेंगे और शक्तिशाली हिंदू मंत्रिमंडल स्थापित कर सकेंगे।</p><p><br /></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">कांग्रेस हिंदुओं की प्रतिनिधि नहीं</span></b></p><p>कांग्रेस की ओर से प्रायोजित एक गोलमेज परिषद के संदर्भ में वीर सावरकर ने कहा था, ''कांग्रेस को हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार नहीं है। यद्यपि कांग्रेस हिंदू मत पर निर्वाचित हुई है तथापि उसने हिंदू हित रक्षा का भरोसा कभी भी नहीं दिया। इसके विपरीत यह कांग्रेस, जो मुसलमानों की अनेक अन्यायी माँगें मान्य करती है, हिंदुओं की एक भी न्याय सम्मत माँग स्वीकार नहीं करती। इसीलिए मैं स्पष्ट शब्दों में कहता हूँ कि ब्रिटिश प्रशासन और मुस्लिम लीग, उसी तरह कांग्रेस और मुसलिम लीग अथवा इन तीनों में जो भी कुछ करारनामे होंगे वे हिंदुओं के लिए बंधनकारक न हों। इस तरह की परिषदों में एक समान अधिकारिणी संस्था के रूप में हिंदू महासभा को आमंत्रित किया जाए और वही प्रस्ताव हिंदुओं के लिए बंधनकारक होंगे जो वह स्वीकार करेगी।''</p><p><br /></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">अपने हाथ में लेनी होगी राजसत्ता</span></b></p><p> १ अप्रैल, १९४० के दिन वीर सावरकर ने महाराष्ट्रीय हिंदू सभा को सबल एवं कार्यक्षम बनाने की दृष्टि से एक पत्रक निकाला, जो सभी शाखाओं का मार्गदर्शक है। उसका आशय इस प्रकार है-</p><p>"हिंदू महासभा की कार्यशक्ति में वृद्धि करते हुए हिंदू राष्ट्र की रक्षा की शक्ति उसमें लाने के लिए आज सबसे प्रमुख एवं आवश्यक बात है कि आज जो राज्यसत्ता प्राप्त होगी उसे हाथ में ले लें। हिंदुओं के न्याय अधिकार रक्षण का व्रत प्रकट रूप से धारण करते हुए चुनाव में खड़े हिंदू संघटक पक्ष को यदि प्रत्येक हिंदू स्त्री-पुरुष मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करे तो हिंदुस्थान के कम-से-कम सात-आठ प्रांतों में हिंदू संघटक पक्ष के हाथ में प्रादेशिक सत्ता आएगी और आज अनेक अन्याय-अत्याचारों तथा दंगा-फसादों से अहिंदुओं द्वारा हिंदू जनता जो उत्पीड़ित है उसमें से नब्बे प्रतिशत हिंदुओं की मुक्ति लगे हाथ प्राप्त की जा सकती है। हिंदू राष्ट्र में नया जीवन और प्रबल आत्मविश्वास का संचार होगा। हिंदुओं का बदला हुआ दबदबा संपूर्ण हिंदुस्थान भर अवश्य होगा।</p><p><br /></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">कट्टर हिंदू संघटक पक्ष को ही करें वोट </span></b></p><p>वीर सावरकर कहते थे कि जिस तरह और जब तक मुसलमान मतदाता कट्टर मुसलमान को ही अपना मत देता है, उसी तरह हिंदू मतदाता को भी कट्टर हिंदू संघटक पक्ष को ही अपना वोट देना चाहिए। अन्यथा हिंदुओं का प्रबल अभ्युत्थान होना असंभव है। सौभाग्यवश हिंदू मतदाता संघ की समझ में यह सूत्र आ गया है।</p><p><b><span style="color: #ff00fe;">-अश्वनी राय</span></b></p>Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-87292943229692357602016-04-12T09:45:00.000-07:002016-04-12T09:46:12.176-07:00कॉमेडी को किसी दायरे में बांधना उचित नहीं : वीर दास <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRZ9QKbXp-6HQjko7uYmh7d5DMtIornpKehuQUxcLUQmMGYFJGkjDwpSKG4wvEjiJewj2ywpCAIJEf9W1kzeQFrN2-W_bUSNJ8rGzJxy2OQ-gauFGUHrOSjzxyHgYnsGsnLktWUfEF80k/s1600/vir+das.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="266" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRZ9QKbXp-6HQjko7uYmh7d5DMtIornpKehuQUxcLUQmMGYFJGkjDwpSKG4wvEjiJewj2ywpCAIJEf9W1kzeQFrN2-W_bUSNJ8rGzJxy2OQ-gauFGUHrOSjzxyHgYnsGsnLktWUfEF80k/s400/vir+das.jpg" width="400" /></a></div>
<div>
<span style="color: red; font-family: "arial" , sans-serif; font-size: x-small;">संता बंता के जोक से तो सभी परिचित हैं। लेकिन फिल्म 'संता बंता' की क्या खासियत है ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
- फिल्म की खासियत बताऊँ तो इसकी कॉमेडी बहुत सिम्पल है, इनोसेंट है। इसमें कोई डार्कनेस नहीं है और न ही किसी तरह की होशियारी है। इसके दोनों पात्रों का दिल बिल्कुल सच्चा है, साफ है। कई सफल कॉमेडियन एक साथ काम किये हैं। फिल्म की शूटिंग फिजी के अच्छे लोकेशन में की गई है। ये बहुत स्वीट किस्म की फिल्म है। संता बंता दो दोस्त हैं। संता ने बंता को बचपन से सम्भाला है . दोनों पंजाब में रहे हैं . सरकार ने उन्हें एक सीक्रेट मिशन पर फिजी जाने के लिए हायर किया है।</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
</div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: red;">आप एक सफल स्टैंडअप कॉमेडियन हैं। आपके लिए तो ये फिल्म आसान रही होगी ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
-आसान तो कोई फिल्म नहीं होती। दूसरे मैं पंजाबी भी नहीं हूँ। ऐसे में मुझे डॉयलॉग और लुक पर काफी काम करना पड़ा। बोमन के साथ मैंने पहले कभी काम नहीं किया था। लेकिन हम दोनों के बैकग्राउंड थिएटर है तो रिहर्सल भी किये थे।</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: red;">आजकल कॉमेडी को लेकर विवाद भी हो रहे हैं। क्या इसके लिए भी कोई आचार संहिता होनी चाहिए ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
-कॉमेडी के लिए किसी ना किसी को आधार बनाना ही पड़ता है। दर्शक को समझना चाहिए कि हर एक जोक किसी के ऊपर ही बनाया जाता है। मैं नहीं समझता की कॉमेडी को किसी तरह के दायरे में बांधना चाहिए। अगर किसी को कोई जोक नहीं पसंद है, तो वो स्वतंत्र है कि उसे ना देखे। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: red;">स्टैंडअप कॉमेडी और थियेटर की चुनौतियों में किस तरह की समानता और भिन्नता देखते हैं ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
-थियेटर में कई लोग होते हैं, जिनसे आपको मदद मिलती रहती है। सारा दारोमदार केवल एक व्यक्ति पर नहीं होता। थियेटर में सबकुछ एक प्लान के तहत सुनिश्चित होता है। थियेटर इंडिया में बहुत पुराना है। इसका आर्ट लेवल बहुत ऊंचा है। थियेटर दर्शक को गंभीर सोच में ले जा सकता है। लेकिन स्टैंडअप कॉमेडी में आप अकेले होते है। दूसरे इसकी दिशा भी पूर्व निर्धारित नहीं होती। आपको ऑडियंस का मूड भांपते हुए चलना पड़ता है। इसका ओर-छोर कहीं भी जा सकता है। हमारे यहां स्टैंडअप कॉमेडी नयी है। इसमें हमारा मकसद दर्शकों को सिर्फ हंसाना होता है। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: red;">आपके पॉजीटिव और निगेटिव पॉइंट क्या हैं ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
-मेरा पॉजीटिव पॉइंट है कि मैं हमेशा एक्साइटेड रहता हूं। काम को लेकर सीरियस हूं और बहुत ही मेहनती हूं। मुझमें निगेटिव बात ये है कि मैं सोता बहुत कम हूं। घर पर ज्यादा समय नहीं दे पाता। क्योंकि कई करियर है। सबको संभालते चलना है। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: red;">आप 2007 से फिल्म इंडस्ट्री में हैं। अपना मूल्यांकन किस तरह कर रहे हैं ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
- देखिये मैंने कभी नहीं सोचा कि फिल्मों में आउंगा। इसलिए मेरी कोई लिस्ट नहीं है। आप इस इंडस्ट्री को देखिये, एक तरह से ये फैमिली ओरिएंटेड इंडस्ट्री लगती है। नजर दौड़ाइये कितने सेलीब्रिटीज के लड़के-लड़की भरे पड़े हैं। यहां हर एक का कोई गॉड फादर है। ऐसे में मैं अपने को खुश किस्मत मानता हूं कि मैं बिना फिल्मी बैकग्राउंड के यहां हूं।</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: red;">आपके मुकाम में मेहनत और किस्मत का औसत क्या है ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
-मैं १०० फीसदी अंक अपनी मेहनत को दूंगा। क्योंकि मैंने अपने भाग्य के बारे में कभी सोचा नहीं। अगर आप ये सोचेंगे कि मेरी किस्मत कहां से आएगी, तो पागल हो जाएंगे। फिर आप न्यूरोलॉजी करने लगेंगे। मेरा मानना है कि बस मेहनत पर फोकस करो और करते जाओ।</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: red;">इस फिल्म की शूटिंग का अनुभव कैसा रहा ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
-बहुत अच्छा रहा। बोमन से मैंने काफी कुछ सीखा। जॉनी लीवर जी का मैं बचपन से फैन रहा हूं। नेहा और लिसा फनी हैं। फिजी हमने बहुत इंजॉय किया। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: red;">एक स्टैंडअप कॉमेडियन में खास क्या होना चाहिए ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
- सबसे महत्वपूर्ण ये है कि जो आपके चश्मे हैं, उनसे आप जिंदगी के बीच क्या देखते हैं। उससे आपको क्या दिखता है। वो अगर स्पेशल न हो तो फिर आप अच्छे कॉमेडियन नहीं बन सकते ।</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: red;">जोक को लेकर संता बंता जाना पहचाना नाम है। क्या इसी टाइटल से आ रही फिल्म को भी कोई फायदा होगा ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
-पहले हमने ये सोचा था कि जो इसका टाइप ऑफ़ ह्यूमर है उसे न लिया जाय। यह फैमिली फिल्म है, बच्चों की फिल्म है। संता बंता जोक की एक बड़ी पहचान है, तो उससे पब्लिसिटी में फायदा होना ही है . लेकिन जिस तरह से इसे डायरेक्ट किया गया है उससे आप फिल्म देखकर इसकी तारीफ़ करेंगे। </div>
</div>
Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-10996800500698210052016-01-23T22:01:00.000-08:002016-01-23T22:01:48.220-08:00एक मुलाकात जावेद जाफरी के साथ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: red;">'लव फॉरएवर' की सबसे महत्वपूर्ण बात जो ये फिल्म करने का कारण बनी ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
—कहानी क्या है, आपका रोल क्या है, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर कौन है? ये चार बाते ही कोई फिल्म साइन करने से पहले महत्वपूर्ण होती है। यही मैंने भी किया। इसकी कहानी कोई बिल्कुल नयी चीज नहीं लेकर आ रही है, हां इंट्रेस्टिंग है। मेरा रोल एक रॉ एजेंट का है। उसे प्राइम मीनिस्टर की बेटी की हिफाजत के लिए भेजा गया है। वहां उस लड़की की सुरक्षा में एक लेडी भी है और वो इस रॉ एजेंट की पूर्व पत्नी है। बात-बात में दोनों में नोंक-झोंक होती रहती है। लेकिन दोनों का एक ही मिशन है, तो साथ काम भी करना है। ये बात मुझे काफी जमी और मैं यह फिल्म करने को तैयार हो गया।</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
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<span style="color: red;">कोई एक समय सीमा तय कर प्यार नहीं करता। फिर 'लव फॉरएवर' 'टाइटल का क्या औचित्व् ? </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
- देखिये भावनाओं में कोई लॉजिक नहीं होता। आप कई गानों में देखेंगे जैसे ' तेरी आंखों के सिवाय दुनिया में रखा क्या है' अब कोई इसका हू बू हू मतलब निकाल कर सवाल कर सकता है, लेकिन यह एक अहसास को व्यक्त करने के लिए लिखी गई लाइन है। इसी तरह 'लव फॉरएवर' टाइटल भी प्यार के जज्बात को व्यक्त करने के लिए रखा गया है।</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: red;">मिमिक्री में आपकी एक पहचान है। आपके ख्याल से इसके लिए ख़ास योग्यता क्या होनी चाहिए ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
- ये बिल्कुल पॉवर ऑफ ऑब्जर्वेशन से जुड़ा हुआ विषय है। मैंने केवल मिमिक्री ही नहीं की है, बल्कि देश की कई भाषाओं में काम किया है और उस दौरान को मैंने बारीकी से समझा है। ये समझना पड़ता है कि कौन सा किरदार कैसे बोलेगा, कैसेउठेगा-बैठेगा। हमारे यहां पता नहीं किसने ये गलतफहमी ला दी कि ये लीड एक्टर हैऔर ये कैरेक्टर एक्टर। अरे भाई लीड एक्टर भी तो एक कैरेक्टर ही होता है। कहना तो एक्टर और सपोर्टिंग एक्ट चाहिए। मेरी कोशिश हमेशा बनने की रहती है। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: red;">आप बच्चों के शो में जज थे। कभी निगेटिव कमेंट करने से पहले मन में बच्चों की भावनाओं को लेकर डर रहा ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
-वुगी-वुगी शो १७ साल चला। हमने इस मामले में काफी बैलेंस रखा। हमेशा कोशिश रही कि किसी का इन्सल्ट न होने पाये। हमने जिसको भी शो में बुलाया, उन्हें प्यार और सम्मान दिया। अगर कभी निगेटिव बातें भी कहनी थी, तो हमने समझाने के अंदाज में कहा।</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: #222222;"> </span><span style="color: red;">आजकल माँ -बाप अपने सपने अपने बच्चों के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं। आपने तो नजदीक से देखा होगा। क्या कहेंगे ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
- ये बहुत डेंजरस सोच है। आपने बिल्कुल सही कहा कि आज मां-बाप अपने सपने अपने बच्चों के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं। आपको बताऊं आज ज्यादातर लोग चकाचौंध से चौंधियाए हुए हैं। वो ग्लैमर के आकर्षक में इतने फंस चुके हैं कि इसी कल्पना में जीने लगते हैं कि मेरा बेटा टीवी पर आएगा, एड में दिखेगा, उसे काफी फेम मिलेगी। कई बार मैंने देखा कि एक छोटी सी बच्ची आती है और किसी आइटम गर्ल की मूवमेंट करती है। मैं तो तुरंत वहीं टोक देता हूं कि यार ये इस बच्ची से क्या करवा रहे हो? इसका बचपना मत छीनो। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: red;">हिंदी सिनेमा में आपने लम्बा समय दिया है। कभी लगा कि यहाँ जो मुकाम आपका होना चाहिए था वो नहीं मिला ? </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
- मैं बहुत कुछ कर सकता था, अभी भी काफी कर सकता हूं। लेकिन मुझे मौके नहीं मिले। इस फिल्म इंडस्ट्री में ९५ प्रतिशत किस्मत का सिक्का चलता है। सलमान खान की पहली फिल्म नहीं चली, लेकिन 'मैंने प्यार कियाÓ के हिट होने के बाद उनकी निकल पड़ी।अजय देवगन को देखकर कइयों ने कहा अरे यार ये हीरो के रूप में नहीं चलेगा।लेकिन उनकी फिल्म हिट हो गयी और वो आज कहां है ये सभी देख रहे हैं। हमारे देश में कई बहुत अच्छे कलाकार हैं, लेकिन उनकी किस्मत उनके साथ नहीं है, तो वो गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। 'शोले' चल गई तो लोग शम्भा को भी जान गये। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: red;">आपने कॉमेडी, मिमिक्री और स्टेज शो सहित क्षेत्रों में काम किया। आपके लिए आसान क्या है ? </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
-मैं अपने आपको एंटरटेनर मानता हूं। आप मेरी फिल्मे देखकर मेरी रेंज जान जाएंगे। मुझे किसी भी रोल में डाल दीजिए मैं उसमें ढल जाऊंगा। मेरा अपने काम को लेकर एक कॉन्फिडेंस है, ओवर कॉन्फिडेंस नहीं। फिल्म चली ना चली, लेकिन मेरे काम पर किसी ने उंगली नहीं उठायी। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: red;">आज की फिल्मों में बदलाव क्या देख रहे हैं ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
-हमारी फिल्में पहले सर्कस की तरह थी। जैसे एक जोकर, एक लड़का, एक लड़की, एक विलेन, एक घोड़ा एक फार्मूले की तरह आते थे। लेकिन आज फिल्मे कहानी के अनुसार चलने लगी हैं। पहले कॉमेडी अलग होती थी, परंतु आज कहानी का हिस्सा बनकर आ रही है। दूसरे आज विकी डोनर और मसान जैसी फिल्में चल रही हैं। लेकिन अभी हमारे यहां इनके लिए मार्केट नहीं बन पाया है। इसका कारण भी है। फिल्म एंटरटेनमेंट का माध्यम है। सबके रोजमर्रा की जिंदगी में समस्याएं हैं, हर जगह तनाव है। लोग इससे बचकर फिल्म में एक खूबसूरत मायावी दुनिया देखने जाते हैं, जिसमें थोड़ी देर के लिए वो अपना गम छोड़कर उसी में खो जाते हैं। अगर फिल्म में भी वही भूख और पीड़ा दिखे तो वो पैसे खर्ज कर क्यों देखें। वो तो आस-पास ही पड़ा है। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: red;">आपका राजनीति में जाना क्या भावनाओं का क्षणिक आवेग था या अब भी जा सकते हैं ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
-मुझे लगा कि एक आदमी सच्चाई के साथ सांप्रदायिकता के खिलाफ आवाज उठा रहा है, तो मुझे उसका साथ देना चाहिए इस लिए चुनाव लड़ गया। वहां मेरा मुकाबला भाजपा के राजनाथ सिंह, कांग्रेस की रीता बहुगुणा और सपा एवं बसपा जैसी मजबूत पार्टियों से रहा। ऐेसे में मुझे जितने वोट मिले वो काफी मायने रखते हैं। क्योंकि एक तो मैं वहां अचानक गया था, दूसरे मेरी पार्टी भी नयी थी। अब मैं सीधे राजनीति में नहीं जाने वाला हूं। हां एक सपोर्टर के रूप में रहूंगा। </div>
</div>
Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-58365132636582142982015-10-20T05:20:00.000-07:002015-10-20T05:20:57.672-07:00बहाने पुकारे भइया ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;">बहाने पुकारे भइया </span><br />
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
ले लूँ तेरी बलइया </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
अपने हाथ </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
चाहे जहाँ तू जाए </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
वहां मेरी दुआएं </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
होंगी साथ </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
ज्योति फैलाये सूरज जब तक गगन से </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
उतनी उमर तेरी माँगू किशन से </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
सूरज पर ग्रहण आये </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
तुझ पर वो भी न आये </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
कोई घात</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
जीवन में हर पल ख़ुशी महक हो </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
माथे चमकता विजय का तिलक हो </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
प्रभु से विनती है मेरी </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
कीर्ति हो जग में तेरी </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
रातों रात </div>
</div>
Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-9750165948853458642015-10-11T09:20:00.001-07:002015-10-11T09:20:43.997-07:00अब लोगों पर अंधविश्वासी की तरह भरोसा नहीं करती : ऋचा चड्ढा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEihFlHApgWDK9IF3maH4ezHaFTeU3ZUS5xe0gC2w-MuOjMjMOrTc4bIy6iPQz-rlXMl6JAs59MStCMb4biVylJNnu7ANafJFLtXVI1st_s2pg-_TAvkoB31gQPoiNOCzq-HbDTf5CfJAdY/s1600/Richa+Chadda.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="425" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEihFlHApgWDK9IF3maH4ezHaFTeU3ZUS5xe0gC2w-MuOjMjMOrTc4bIy6iPQz-rlXMl6JAs59MStCMb4biVylJNnu7ANafJFLtXVI1st_s2pg-_TAvkoB31gQPoiNOCzq-HbDTf5CfJAdY/s640/Richa+Chadda.JPG" width="640" /></a></div>
<br />
क्या अब आपका संघर्ष खत्म हो गया है ?<br />
- संषर्ष तो अब भी चल रहा है। बस उसका रूप बदल गया है। पहले ऑटो से संघर्ष कर रही थी और अब अपनी गाड़ी से करती हूं। पहले फिल्म पाने के लिए भाग दौड़ कर रही थी, अब अपने काम को नया आयाम देने में श्रम लगा रही हूं। फिल्म इंडस्ट्री में होना मतलब लाइफ टाइम के लिए संघर्ष में होना है। इसलिए ऐसा नहीं कह सकती कि कुछ फिल्मों की सफलता और प्रशंसा के बाद मेरा संघर्ष खत्म हो गया है। यहां हर फ्राइडे के बाद करियर का भविष्य निर्धारित होता है।<br />
<br />
आपकी पहचान टुकड़ों में हुई है। बीच के समय में हौसला कैसे बनाए रखा ?<br />
- 'ओए लकी लकी ओए' और 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' के बीच चार साल का गैप है। उसमें २००८ से २०१० तक का समय मेरे लिए काफी मुश्किलों भरा रहा। मेरे पास कोई काम नहीं था। उस दौरान मैंने अपने अंदर के कलाकार को जिंदा रखने के लिए थियेटर किये, नाटक किये। किसी काम को पाने का हौसला बनाये रखने के लिए सबसे जरूरी है कि उसमें आपकी रुचि लगातार बनी रहे। इसके अलावा आपकी हॉबिज और आपसे जुड़े लोगों की भी भूमिका महत्वपूर्ण होती है, जिससे आप निराशा में जाने से बच जाते हैं। मेरे मुश्किल दिनों में मेरे परिजनों का बड़ा सहयोग रहा। पैसे कम होने पर पैसे भेजे, मुझसे बातचीत में उन्हें कभी लगता था कि मैं कुछ निराश हूं, तो वो मुंबई आ जाते थे।<br />
<br />
'मैं और चाल्र्स' कैसी फिल्म है ?<br />
- ये एक थ्रिलर फिल्म है। क्रिमिनल चाल्र्स की कहानी है कि कैसे वो लॉ स्टूडेंट मीरा की मदद से दो- चार कैदियों के साथ देश की सबसे सुरक्षित जेल तिहाड़ से भाग जाता है। उसके बाद पुलिसकर्मी अमोल चाल्र्स की जिंदगी में भाग दौड़ शुरू करता है। चाल्र्स गोवा में पकड़ा जाता है और फिर मुंबई में उसका सामना अमोल से होता है। इसमें यही दिखाया गया है कि कैसे घटनाओं की प्लाटिंग और उन्हें अनकवर किया गया है। मैं मीरा बनी हूं और चाल्र्स का किरदार रणदीप हुड्डा निभा रहे हैं।<br />
<br />
ग्लैमर इंडस्ट्री में होकर भी ग्लैमरस हीरोइन की पहचान ना होने को लेकर कभी कसक होती है ?<br />
- हां, कभी-कभी ये कसक उठती है। इसकी वजह ये है कि ग्लैमरस रोल की फिल्में करने के कारण आपके पास कमाई करने के कई रास्ते आ जाते हैं। कई शोज, अपियरेंस के मौके मिलते हैं। ऐसा नहीं है कि मैं ग्लैमरस रोल की फिल्में बिल्कुल ही नहीं कर रही हूं। लेकिन उसको लेकर बहुत बेचैन नहीं हुई जा रही हूं। 'मसान' की सफलता के बाद कई लोगों ने मुझसे पूछा कि आप बड़े बजट की कमर्शियल फिल्में क्योंनहीं करतीं। मैं उन सभी से कहना चाहती हूं कि 'मसान' जैसी मीनिंगफुल अच्छी फिल्में और करना चाहूंगी।<br />
<br />
जब पहली बार अभिनेत्री बनने का ख्याल आया, तो क्यावो ग्लैमर का आकर्षण था ?<br />
- बचपन से ही मुझे लग रहा था कि मैं अभिनेत्री बनने के लिए ही बनी हूं। मेरे मन में आकर्षण ग्लैमर को लेकर ना होकर सिनेमा को लेकर था कि वो कौन सी बात है, जो बनावटी होते हुए भी इतना असरदायी है। ये बच्चे से लेकर बड़े तक सभी जानते हैं कि जो पर्दे पर दिख रहा है, वह बनाया हुआ है। फिर भी सभी उससे जुड़ जाते हैं।<br />
<br />
<br />
फिल्म इंडस्ट्री में कभी ठगे जाने का अहसास हुआ ?<br />
— हां, ये अहसास कई तरह के हैं। जैसे कुछ लोगों ने कोई काम देने का भरोसा देकर लटकाए रखा, लेकिन वो कोरा आश्वासन ही साबित हुआ। स्ट्रगल के दिनों में ऐसे कटु अनुभन होते रहते हैं। लेकिन यही अहसास हमें परिपक्व बनाते हैं। <br />
अब मैं लोगों पर अंधविश्वासी की तरह भरोसा नहीं करती हूं।<br />
<br />
</div>
Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-21939544897828538402015-10-02T11:23:00.002-07:002024-01-02T01:41:30.358-08:00हमारा समाज भगोड़ा है : लव रंजन <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><i><span style="color: red;"><br /></span></i></b>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgsU2nEFLWHAzYLqe4XbNleFIw9VZTuaYfPRoRgtC6P_HdC94s4zQ27N1q7BbjHmqYc6ZAdAgHhW-VXa4mVhHikxj7dC0s5IS5E6-Ez-AyRHBs2YGNH3q1FShPDGS9U545l6zUTrSnXyg/s1600/ashwini+rai.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="384" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgsU2nEFLWHAzYLqe4XbNleFIw9VZTuaYfPRoRgtC6P_HdC94s4zQ27N1q7BbjHmqYc6ZAdAgHhW-VXa4mVhHikxj7dC0s5IS5E6-Ez-AyRHBs2YGNH3q1FShPDGS9U545l6zUTrSnXyg/s640/ashwini+rai.jpg" width="640" /></a></div><div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b><i><span style="color: red;">2011 में आई फिल्म 'प्यार का पंचनामा' के जरिये लड़का -लड़की के आधुनिक संबंधों को लेकर एक नयी बहस की शुरुआत करने वाले निर्देशक लव रंजन 'प्यार का पंचनामा २' लेकर आ रहे हैं। फिल्म के प्रमोशन के दौरान हुई मुलाकात में उन्होंने फिल्म और समाज सहित कई मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखी। प्रस्तुत है प्रमुख अंश - </span></i></b></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b><span style="color: blue;"><br /></span></b></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b><span style="color: blue;">सबसे महत्वपूर्ण बात क्या है जिसके लिए 'प्यार का पंचनामा २' देखनी चाहिए ?</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
- 'प्यार का पंचनाम' की खासियत यह है कि ये वो बात कहती है, जो कोई और नहीं कहता। आदमी औरतों को कैसे परेशान करता है, इस पर कई फिल्में बनी हैं। लेकिन महिलाएं किस तरह पुरुषों को तंग करती हैं इसे केवल 'प्यार का पंचनामा' दिखाती है। 'प्यार का पंचनामा २' पहले से ज्यादा मजेदार है। मैंने इसे बहुत संजीदगी के बजाय मजाक में दिखाया है कि भाई देखो ऐसा भी होता है। इसके किरदार लोगों को कनेक्ट करेंगे। फिल्म की घटनाएं देखकर हर एक को लगेगा कि हां यार मेरे साथ या मेरे दोस्त के साथ ऐसा ही हुआ है। मेरा दावा है कि आप हंसते रहेंगे और आपको पता नहीं चलेगा कि फिल्म कब खत्म हो गयी। आपकी कोई दोस्त होगी या बीवी होगी तो यह फिल्म दिखाकर यह बताने का मौका मिल जाएगा कि देखो ये कई सारे बातें हैं, जो मैं तुमसे नहीं कह पाता था। अब समझ भी जाओ और मुझे हैरान-परेशान करना छोड़ दो।</div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b><span style="color: blue;"><br /></span></b></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b><span style="color: blue;">'प्यार का पंचनामा' आने के बाद आपको महिला विरोधी कहा गया। कुछ कहना चाहेंगे ?</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
- माफी के साथ कहना चाहूंगा कि हमारा समाज जो है, वो एक भगोड़ा किस्म का समाज है। इससे ज्यादा भगोड़ा मैंने दुनिया में कहीं नहीं देखा। यह समाज किसी चुनौती पर बहस करने को तैयार होने के बजायअपनी सुविधानुसार रास्ता पकड़ निकल पड़ता है। मैंने एक बहस की शुरुआत की। मेरी दूसरी फिल्म 'आकाशवाणी' किसी ने नहीं देखी। वो तो पूरी तरह से लड़कियों के ऊपर थी कि पढ़ी-लिखी लड़कियां भी किस तरह मां-बाप के कहनेपर शादी कर लेती हैं। तब तो मुझे किसी ने फेमिनिस्ट, लड़कियों का शुभ चिंतक नहीं कहा। देखिये कोई भी फिल्मकार कल्पना से फिल्में बनाता है। ये उसका रचना पक्ष होता है। उसे किसी के निजी व्यक्तित्व से जोडऩा मैं सही नहीं मानता। मैं ऐसी बातों से विचलित नहीं होता। जो बातें पीढिय़ों से चली आ रही हैं, उसे टूटने में समय लगेगा। जैसे तराजू के एक पलड़े में कुछ पहले से रखा है और दूसरे को भी बराबर करने के लिए हम उसमें कुछ रखते हैं, तो वो एकाएक बराबर नहीं हो जाता। पहले वो झूलता है। मैं आशान्वित हू कि एक दिन ऐसा समय आएगा। क्योंकि समानता तो होनी ही चाहिए। </div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b><span style="color: blue;"><br /></span></b></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b><span style="color: blue;">'प्यार का पंचनामा' से पार्ट २ में समानता और भिन्नता क्या है ?</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
- समानता सुर की है, आत्मा की है और मुद्दे की है। तीनों किरदार नये हैं और उनकी कहानियां भी अलग हैं। 'प्यार का पंचनामा' के मध्यांतर बाद मैं कुछ ज्यादा संजीदा हो गया था। लेकिन इस बार मैंने थोड़े हल्के तरीके सेमनोरंजक रूप से बातें कही है। ताकि किसी को कुछ चुभे नहीं। मैंने हंसते-हंसते सारी बातें कहने की कोशिश की है।</div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b><span style="color: blue;"><br /></span></b></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b><span style="color: blue;"> पार्ट १ की बड़ी सफलता आज आपके लिए दबाव है या चुनौती ?</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
- उम्मीद है। उसका कारण है कि पार्ट वन जब आया था, तब कोई न तो मुझे जानता था और न ही उस फिल्म को। 'प्यार का पंचनामा' के रिलीज के बाद तुरंत लोग देखने भी नहीं आये। देखकर आये लोगों ने औरों के इसके बारे में बताया तब फिल्म लंबे समय तक थियेटरों में लगी रहकर हिट हुई। लेकिन इस बार लोग मुझे और 'प्यार का पंचनामा २' दोनों के बारे में जान गये हैं। लोगों में इसको लेकर उत्साह है, तो मैं यही कहूंगा कि मुझे उम्मीद है कि दर्शक ये फिल्म देखने जरूर आएंगे।</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
</div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b><span style="color: blue;">चार साल बाद 'प्यार का पंचनामा' का सिक्वल बनाने का कारण सफलता को लेकर कोई रिस्क से बचना तो नहीं रहा ?</span><span style="color: #222222;"> </span><span style="color: #666666;">क्योंकि आप एक मजबूत आधार पर चल रहे हैं...</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
- ये बात पहले से ही थी। बस हमारा स्टैंड ये था कि हम बैक टु बैक नहीं बनाना चाहते थे। हम बीच में कुछ और बनाना चाहते थे। इसमें चार क्यापांच साल भी लग सकते थे। फिल्म लाइन में सब कुछ आपके हाथ में नहीं होता। कई कारणों से काम लटक जाता है। सबसे जरूरी बात आपके पास स्क्रिप्ट होनी चाहिए और स्क्रिप्ट के बारे तो कोई निश्चित फार्मूला नहीं होता। यह ३० दिन में भी पूरा हो जाएगा और ६ महीने भी लग सकते हैं। ऐसे में जब तक आपके हाथ में पूरी तरह से तैयार स्क्रिप्ट नहीं आ जाती आप फिल्म बनाने के बारे में कैसे सोच सकते हैं। यही तो मुख्य आधार है। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b><span style="color: blue;">पार्ट वन की सफलता में उसके संवादों का बड़ा योगदान रहा। आप संवादों से दर्शकों को बांधने में ज्यादा यकीन करते हैं या सिचुएशन से प्रभावित करने में ?</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
- मेरा मानना है कि अगर आप दोनों में से किसी पर कम और ज्यादा ध्यान रखते हैं, तो आप फिल्म के साथ न्याय नहीं कर पाएंगे। यदि मैं सिर्फ संवादों से दर्शक को बांधने की कोशिश करुंगा, तो हो सकता है उन्हें हंसी आ जाए, लेकिन उससे असरदायी मनोरंजन नहीं हो सकता। आपको मजा संवादों से आता है, लेकिन कनेक्टिविटी सिचुएशन और किरदारों से आती है। इस लिए जैसे दर्शक को बांधने के लिए अच्छे संवाद की जरूरत है, उसी तरह उन्हें प्रभावित करने के लिए सिचुएशन भी महत्वपूर्ण है। अपवाद स्वरूप ऐसा हो जाता है कि अच्छी सिचुएशन औसत संवाद को संभाल लेती है और कभी संवाद इतने सटीक होते हैं कि अपनी रवानी में दर्शकों को बहा ले जाते हैं, जिससे सिचुएशन की कमी छिप जाती है।</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b><span style="color: blue;">आपकी सभी फिल्मों में कार्तिक और नुशरत रहे हैं। इन पर इतना भरोसा का कारण क्या है ?</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
- 'प्यार का पंचनामा' में तो ये दोनों भी अन्य छह कलाकारों की तरह मेरे कास्टिंग डायरेक्टर के जरिये आये थे। फिर उसके बाद इनके साथ एक कम्फर्ट लेबल आ गया। दोनों ही मेहनती और अच्छे कलाकार हैं। दोनों वक्त देने के लिए तैयार रहते हैं। मेरे लिए कमिटमेंट बहुत मायने रखता है। जो आप मेरे लिए वक्त दिये हैं, मै चाहता हूं कि बीच में आप उसमें कोई व्यवधान न डालें। टालमटोली या कामचोरी के बीच काम करना मेरे लिए मुश्किल हो जाएगा। सिर्फ ये ही नहीं बल्कि मेरे कैमरामैन, संगीतकार, एडिटर और कोरियाग्राफर भी नहीं बदले हैं। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b><span style="color: blue;">और प्रोड्यूसर भी । कैसा रिश्ता है उनके साथ ?</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
- सात साल पहले की बात है मैं और अभिषेक दोनों यंग थे। दोनों न्यूयार्क से लौटे थे। हमारी पहचान एक दोस्त की शादी में हुई थी। जहां तक रिश्ते की बात है, प्रोड्यूसर-डायरेक्टर की वही जोड़ी अच्छी हो सकती है जो लड़ाइयां झेल ले। हममें अब भी लड़ाई होती हैं, बस प्रकृति बदल गयी है। आज हम दोनों एक दूसरे की कमियां और खूबियां जानते हैं और उसी रूप में एक दूसरे को स्वीकार कर चुके हैं। काम के प्रतिईमानदारी दोनों की सेम है। बतौर प्रोड्यूसर अभिषेक पैसा कमाना चाहता है, लेकिन अच्छी फिल्म बनाकर और मैं एक ऐसी अच्छी फिल्म बनाना चाहता हूं, जो पैसा भी कमाये। अभिषेक की एक अच्छी बात बताऊं, कई बार इसके मना करने के बाद भी मैंने वो काम किया और गलत साबित हो गया। लेकिन ये बाद में मुझे ये जताने नहीं आया। तो इससे एक सम्मान और विश्वास का रिश्ता कायम हो जाता है। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b><span style="color: blue;">आज आप जो हैं, उसकी बुनियाद कब पड़ी ?</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
-(हंसते हुए) १९८१ में जब मैं पैदा हुआ। नौवीं कक्षा में था, जब राइटिंग में रुचि हुई और कविता, शेर लिखने की कोशिश करने लगा। मेरी मां भी डॉक्ट्रेट की हैं तो इस दिशा में घर में ही माहौल मिल गया और सपोर्ट भी मिलता रहा। दूसरे मैं फिल्में भी बहुत देखता था। शायद उसका भी असर है। </div>
</div>
Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-11798278357914392012015-09-11T10:16:00.002-07:002015-09-11T10:16:21.367-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnBkDQE0WqbZhia5V8vxAe1z_BNvP2ZL5_yc2D48rfVM2qEbflNh1vx9bFAOmJvwYfZpP246_8jkNy5ueUEvKj0fWvaCdol9qknNOsJ-72VPLTyWJkgoy4MeZ9UT0nusBSRWd9DRbtGgo/s1600/PK_06.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="108" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnBkDQE0WqbZhia5V8vxAe1z_BNvP2ZL5_yc2D48rfVM2qEbflNh1vx9bFAOmJvwYfZpP246_8jkNy5ueUEvKj0fWvaCdol9qknNOsJ-72VPLTyWJkgoy4MeZ9UT0nusBSRWd9DRbtGgo/s320/PK_06.jpg" width="320" /></a></div>
<br /></div>
Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-78820474120569384302015-08-22T07:32:00.002-07:002015-08-22T07:32:24.539-07:00जज्बे से भरपूर प्यार के सामुदायीकरण की फिल्म 'मांझी द माउंटेन मैन' <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1buIgIP6TWY0MFgHgVzPmgw3441JNPFAXpWd02io8h3-eIKrLM3HqsWivPRIyo2rNIs7TwjQ0NT0iWjRETExQoGe8hTwUlCjE47x30A5kU8gsOVEfSUMGLryVYxyID4XmezWQu14nj98/s1600/PK_22_MU_08F.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="270" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1buIgIP6TWY0MFgHgVzPmgw3441JNPFAXpWd02io8h3-eIKrLM3HqsWivPRIyo2rNIs7TwjQ0NT0iWjRETExQoGe8hTwUlCjE47x30A5kU8gsOVEfSUMGLryVYxyID4XmezWQu14nj98/s320/PK_22_MU_08F.jpg" width="320" /></a></div>
बिहार के गया जिले के दलित दशरथ मांझी के रुहानी प्रेम की सच्ची घटना से प्रेरित 'मांझी द माउंटेन मैन' प्यार और जज्बे की ऐसी कहानी है, जिसमें व्यक्तिगत के साथ-साथ सामुदायिकता का भाव समाहित है। दशरथ की गर्भवती पत्नी फल्गुनिया पानी लाते पहाड़ से फिसलकर गिर गयी थी। उसके गहलोर गांव से वजीरगंज अस्पताल पहुंचे में पहाड़ होने सेहुई देरी के कारण फल्गुनिया की मौत हो जाती है। ऐसा किसी और के साथ न हो इसलिए दशरथ ने पत्नी को याद करते २२ सालों तक लगातार अकेले पहाड़ काट कर रास्ता बना दिया था। निर्देशक केतन मेहता के लिए निश्चित रूप से दशरथ मांझी के पहाड़ तोड़ रास्ते बनाने के भागीरथी प्रयास और दिवंगत पत्नी को समर्पित प्रेरणा को एक स्क्रिप्ट का रूप देना काफी मुश्किल रहा होगा। मध्यांतर से पहले इसकी झलक भी दिखती है, लेकिन मध्यांतर के बाद फिल्म एक सूत्र में बंध जाती है। किसी क्षेत्र विशेष की सच्ची घटना को राष्ट्रीय स्तर पर दिखाने में दो प्रमुख समस्याएं आती हैं। एक वातारवरण की और दूसरी भाषा की। वातावरण की समस्या तो संबंधित स्थल पर जाने से हल हो जाती है, लेकिन भाषा की समस्या अंत तक खतरा बनी रहती है। निर्देशक यदि वही भाषा पकड़ता है, तो राष्ट्रीय स्तर पर संप्रेषण में बाधा आएगी और अगर छोड़ता है, तो वातावरण से सामंजस्य कैसे बैठेगा। इस खतरे से '<br />
मांझी..' भी नहीं बच पायी है। केतन मेहता ने पूरी शूटिंग उसी घटना स्थल पर करके पर्दे पर सच्चाई का आभास तो करा दिया। लेकिन भाषा असंगत रह गयी।<br />
'मांझी...' पूरी तरह से दशरथ मांझी के किरदान में नवाजुद्दीन सिद्दीकी की फिल्म है। पहले सीन में ही पहाड़ के समक्ष पत्नी के विरह में दशरथ की हृदयविदारक ललकार चौंकन्ना कर देती है। अपनी धुन के पक्के एक मूडी युवा प्रेमी से लेकर संवेदनशील बुजुर्गावस्था तक की दशरथ मांझी की जीवटता के टेंपो को नवाजुद्दीन ने पर्दे पर बरकरार रखा है। फल्गुनिया के रोल मेंराधिका आप्टे उस आदिवासी क्षेत्र की आबो हवा में घुलमिल सी गयी हैं। कथा विस्तार में फिल्म जमींदारी प्रथा और छूआछूत जैसे तत्कालीन सामाजिक मुद्दों को भी छूते हुए निकलती है। इसके लिए पात्रों का चयन भी सार्थक साबित हुआ है। लेकिन दशरथ मांझी के पूरे अभियान के बीच कई बार शाहजहां और ताज महल का जिक्र खटकता है। क्याआप मांझी के कामको शाहजहां का अनुकरण दिखाना चाहते हैं? अगर इन दोनों के कार्यों का विश्लेषण किया जाए, तो दशरथ मांझी का प्रेम कहीं ज्यादा पवित्र और सार्वभौमिक है। उसने अपने प्रेम का सामुदायीकरण कर दिया है। दूसरे ताज महल को हजारों कारीगरों ने बनाया था, जबकि दशरथ ने २२ साल में यह रास्ता अकेले बनाया था, जिसे बाद बिहार सरकार ने ३० साल में सड़क में परिवर्तित कर उसका नाम 'दशरथ मांझी पथÓ रखा।<br />
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स्टार : तीन</div>
Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-43440073509689332912015-08-16T08:52:00.000-07:002015-08-16T08:52:02.051-07:00'शोले' के ४० साल : बिग बी ने खोला यादों का पिटारा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjD1WaOcO5ZPoeA_jeM23TZC_dIjAiCAqFAc3CvRKriHNeQtNakT3-0q0w5y7Qtt4OfiDgIDJyld2KOK0PMSlqlvbb0XeEdg2xC6eTxcXxsjxqmrCcV8i4Vd27fyaWkh4EZtZYuZizqG3U/s1600/PK_16_MU_08F.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="224" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjD1WaOcO5ZPoeA_jeM23TZC_dIjAiCAqFAc3CvRKriHNeQtNakT3-0q0w5y7Qtt4OfiDgIDJyld2KOK0PMSlqlvbb0XeEdg2xC6eTxcXxsjxqmrCcV8i4Vd27fyaWkh4EZtZYuZizqG3U/s320/PK_16_MU_08F.jpg" width="320" /></a>१५ अगस्त, १९७५ को रिलीज हुई फिल्म 'शोले' के ४० वर्ष पूर्ण होने पर मीडिया से बात करते हिन्दी सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्चन ने इस फिल्म से जुड़ी कई यादों को साझा किया। उन्होंने कहा कि इसकी शूटिंग करते कभी यह सोचा नहीं था कि यह फिल्म इस तरह का इतिहास रचेगी। जब बिग बी से पूछा गया कि निजी जिंदगी में आपका वीरू कौन है, तो उन्होंने कहा, अभिषेक मेरा वीरू है। वह मेरा दोस्त है। धर्मेंद्र जी से आज भी मेरे अच्छे संबंध है।'' अपनी बेटी श्वेता को भी 'शोले' का हिस्सा बताते हुए उन्होंने बताया कि जिस सीन में मैं जया बच्चन को चाबी देने जाता हूं, उस दौरान श्वेता अपनी मां के गर्भ में थी। इसलिए मैं श्वेता से भी कहता हूं कि तुमने भी 'शोले' में काम किया।<br />
अपने किरदार जय के बाबत अमिताभ बच्चन ने कहा, 'शोले' रिलीज के शुरू में दर्शकों की अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिलने के कारणों पर विचार करते टीम इस निश्कर्ष पर पहुंची कि जय का फिल्म में मर जाना शायद लोगों को अच्छा नहीं लग रहा। इसका कारण यह भी सोचा गया कि मेरी पिछली फिल्म 'दीवार' के अंत में भी मेरी मौत दिखाया गया था और मेरी अगली फिल्म में भी मेरा मरना दर्शकों को खटक रहा है। इसलिए जय का सुखद अंत करने के लिए दुबारा शूट करने निर्णय किया गया। वो शनिवार का दिन था और हम लोगों को रविवार को शूटिंग के लिए बंगलौर के रामनगर जाना था। ताकि नये प्रिंट के साथ फिल्म सोमवार को रिलीज कर दी जाये । इसी बीच निर्देशक रमेश सिप्पी ने कहा कि सोमवार तक इंतजार कर लेते हैं। फिर जो सोमवार को हुआ वो अद्भुत था। कांफ्रेंस के दौरान बिग बी ने फिल्म के कलाकारों धमेंद्र का जिक्र करते बताया कि जय के रोल के लिए जब मेरे नाम पर दुविधा बनी हुई थी, तो मैं धरम जी के घर पर जाकर अपने लिए उनसे कहा था कि मैं इस फिल्म से जुडऩा चाहता हूं आप भी मेरी पैरवी कर दीजिए। साथ ही संजीव कुमार, अमजद खान, ए.के. हंगल सहित अन्य दिवंगत कलाकारों को भी याद किया।<br />
गौरतलब हो कि डाकू और दोस्ती की पृष्ठभूमि पर बनी 'शोले' में संजीव कुमार, अमजद खान धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, अमिताभ बच्चन, जया बच्चन द्वारा निभाये गये किरदारों की कॉपी आज भी विज्ञापन सहित<br />
अन्य माध्यमों में दिख जाती हैं। </div>
Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-32553427931416314522015-08-10T10:18:00.000-07:002015-08-10T10:18:32.380-07:00Film Review - Jaanisaar<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggvakUcXsmzcC4iTqf_3DGv4vErYfoHvuTCZ74Cf08pd48zPy1lE0_T8HN-a1Odd0X79fspD-tS9ho5Kn5DsRu42QSnw0FhJD5rsZ8W4XYQM0BswDd5WtL4CgJNxamBF9NRNFEz0MCOeE/s1600/PK_09_MU_08F.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="196" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggvakUcXsmzcC4iTqf_3DGv4vErYfoHvuTCZ74Cf08pd48zPy1lE0_T8HN-a1Odd0X79fspD-tS9ho5Kn5DsRu42QSnw0FhJD5rsZ8W4XYQM0BswDd5WtL4CgJNxamBF9NRNFEz0MCOeE/s320/PK_09_MU_08F.jpg" width="320" /></a></div>
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Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-58661362313113515722015-07-31T09:28:00.005-07:002015-08-01T06:33:47.392-07:00'दृश्यम' : कानून बनाम भावना <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgjXP1KW81pmlDKHrnQvQjPWIl_-aDXTSmjjjovUX02PO7GuxfHXa6m4Vgy8yGYFo2SpN7LFs3R_0fKWtgZimDegTvuVW1R4fQ3XdLf_3z7PP6vCe3hlzcgjRKxcYiagw6ywPo7MbBL9VU/s1600/PK_01_MU_08F.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="127" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgjXP1KW81pmlDKHrnQvQjPWIl_-aDXTSmjjjovUX02PO7GuxfHXa6m4Vgy8yGYFo2SpN7LFs3R_0fKWtgZimDegTvuVW1R4fQ3XdLf_3z7PP6vCe3hlzcgjRKxcYiagw6ywPo7MbBL9VU/s320/PK_01_MU_08F.jpg" width="320" /></a></div>
सस्पेंस फिल्मों में अक्सर किसी हत्या या मुख्य घटना का पर्दाफाश अंत में होता है। कथा विस्तार में दर्शक अंदाजा लगाते रहते हैं। लेकिन 'दृश्यम' इसके ठीक उलट चलती है। इसमें मुख्य घटना आई.जी. मीरा देखमुख (तब्बू) के इकलौते पुत्र की हत्या से दर्शक पहले ही परिचित हो जाते हैं। लेकिन दिलचस्पी का कारण बनती है उस हत्या के आरोप से अपनी बेटी को बचाने की जूस्तजू करते पिता की तरकीबें। फिल्म की सबसे बड़ी ताकत इसकी कहानी है। मूल रूप से मलयालम में बनी 'दृश्यम' को डायरेक्टर निशिकांत कामत ने इसी नाम से हिंदी में बनाया है। पूरी कहानी विजय सालगांवकर(अजय) के एक वाक्य में वर्णित हो जाती है, जहां वो अपनी पत्नी से कहता है, ' कोई अपने परिवार के बिना जी नहीं सकता । इसके लिए दुनिया उसे चाहे खुदगर्ज कहे ।'</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
अजय देवगन को गंभीर रोल में देखना हमेशा अच्छा लगता है। अजय की आंखें इसमें अहम भूमिका निभाती हैं। उनकी आंखों से सादगी, बेचारगी और आक्रोश की अभिव्यक्ति काफी तीव्र होती है। बतौर कलाकार अजय की दाद देनी पड़ेगी कि पिछले कुछ सालों से केवल एक्शन और कॉमेडी करता हीरो कैसे एक चौथी फेल गंवार के व्यक्तित्व से अपनी बॉडी लैंग्वेज को एकाकार कर लेता है। तब्बू प्रशासनिक दायित्व के बीच एक मां की पीड़ा को जब तब दर्शा गयी हैं। अजय की बीवी और बेटी की भूमिका में श्रेया सरन और इशिता दत्ता ने भय के साये की जिंदगी को पर्दे पर इस तरह जिया है कि विषयवस्तु का असर और गाढ़ा हो गया है। रजत कपूर के हिस्से संवाद बहुत कम हैं, लेकिन कुछ गलत न हो जाय की चिंता में कभी एक-दो शब्दों में , तो कभी मूक अभिव्यक्ति और अंतिम सीन में बेटे के बाबत अजय देवगन से उनकी कातर अपील सहानुभूति बटोरती है। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
फिल्म में कुछ खटकने की बात करें तो मध्यांतर का इंतजार कुछ लंबा लगता है। यहां थोड़ा संपादन कर दिया गया होता तो अच्छा होता। दूसरे एक भावनात्मक फिल्म के संवाद और दृश्य जितने हृदय स्पर्शी होने चाहिए, उसकी कमी है। पूरी फिल्म में केवल एक सीन ऐसा आता है, जो एक पिता के कथ्य ' तुम लोगों का कुछ होने नहीं दूंगा' को चित्रित होते दिखाता है। जहां दिल से वाह निकल जाती है। वो सीन है विजय सालगांवकर के घर पहली बार आती पुलिस का। जब विजय की बेटी पुलिस को देख रुआंसा हो जाती है, लेकिन पुलिस बेटी से रू-ब-रू होती है, उसके पहले विजय पुलिस के समक्ष आ जाता है। संवादों में एक जगह बड़ी चूक दिखती है, जब विजय अपनी बेटी के सामने ही पत्नी से कहता है 'मेरी इस्टेमिना तो रात में ही खत्म हो गयी । ' इसमें विरोधाभास दिखता है। जिस आदमी को आप इतना दरियादिल दिखाते हैं, जो लावारिश पड़ी लड़की को घर लाकर गोद ले लेता है, वो भला कैसेअपनी उसी जवान लड़की के सामने ऐसी बात कह सकता है। पृष्ठभूमि में बजते एक-गाने पात्रों की मन:स्थिति को तो बयां करते हैं, लेकिन ज्यादा प्रभावशाली नहीं हैं। अन्य पात्रों की चयन भी काबिले तारिफ है।<br />
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स्टार : तीन </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
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<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
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<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
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Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-81490080777833571852015-07-27T08:47:00.000-07:002015-07-27T08:47:13.776-07:00मैं कमर्शियल हीरोइन हूं : ऋतुपर्णा सेनगुप्ता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: #ead1dc;">बंगला फिल्मों की बेहद लोकप्रिय अभिनेत्री, जिसे परिभाषित करते हम प्रतिभा और खूबसूरती का संगम कह सकते हैं। हम बात कर रहे हैं सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त कर चुकी ऋतुपर्णा सेनगुप्ता की। उनके जिवंत अभिनय का ही कमाल है कि बंगला और हिंदी फिल्मों में उन्हें ग्लैमरस और पैरलल दोनों तरह की फिल्मों के ऑफर हमेशा आते रहे। मुलाकात के दौरान उन्होंने रील रोल का रियल जीवन में प्रभाव, इमेज, ऑडियंस के प्रति अपनी भावनायें और हिंदी फिल्मों की जर्नी के बाबत कई बातें शेयर की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश- </span><br />
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<span style="background-color: orange;">क्या 'बाहुबली' की रिकॉर्ड सफलता के बाद अब राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय फिल्मों को गंभीरता से लिया जाएगा ?</span><br />
- ये तो होना ही चाहिए। क्योंकि इंडियन सिनेमा का मतलब केवल हिंदी सिनेमा नहीं हो सकता। इंडियन सिनेमा के अंदर सभी भारतीय भाषाओं की फिल्में आ जाती हैं। हर क्षेत्र की अपनी संस्कृति है। जितना हम एक दूसरे की संस्कृति को जान सकेंगे, उतना ही देश के लिए अच्छा रहेगा। इससे भारतीय कला समृद्धि होगी। सबको समान रूप से देखना चाहिए। क्योंकि हर क्षेत्र में अच्छा काम हो रहा है। अच्छे कलाकार और अच्छे डायरेक्टर हैं। इसलिए रिजनल सिनेमा या उनसे जुड़े लोगों को कमतर आंकना सही नहीं होगा।<br />
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<span style="background-color: orange;">आप पैरलल फिल्में ज्यादा करती हैं। आपको नहीं लगता कि एक ग्लैमरस अभिनेत्री को कमर्शियल सक्सेस का हिस्सा होना जरूरी है?</span><br />
-मैं निश्चित रूप से कमर्शियल हीरोइन हूं। कमर्शियल सिनेमा की प्रोडक्ट हूं। लेकिन मेरा जो किरदार होता है, वो केवल कमर्शियल की सीमा में बंधा नहीं रहता, बल्कि उससे आगे बढ़कर दर्शकों से रिलेट करता है। दूसरे डायरेक्टर मेरी काबिलियत पर भरोसा करते यह अपेक्षा करते हैं कि मैं किरदार को एक अलग लेबल पर ले जाऊं। मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं कि मुझे कमर्शियल फिल्में ज्यादा करनी चाहिए।<br />
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<span style="background-color: orange;">आप हिंदी भाषी दर्शकों में भी जितनी पहचानी जाती है, हिंदी फिल्मों में उस स्तर का आपका काम नहीं दिखता। क्या बंगला फिल्मों जितनी हिंदी फिल्मों को लेकर समर्पण में कमी रही ?</span><br />
-इसके कई कारण हैं। एक तो मैं हमेशा बंगला फिल्मों ज्यादा बिजी रही हूं। सो इधर ध्यान कुछ कम रहा। लेकिन यहां बहुत कुछ एक्वेशन की भी बात है। कई डायरेक्टर होते हैं, जिनकी एक्टर-एक्ट्रेस के साथ टीम होती है। उनकी प्राथमिकता उन्हीं के साथ काम करने की होती है। मैं अभी तक उस तरह की टीम का हिस्सा नहीं बनी हूं। मैं भी सोचती हूं कि बंगाला फिल्मों में जो मेरा प्रोफाइल है, नाम है और जो स्तर है। वैसा ही मुकाम यहां भी हो। लेकिन आप ही बताइये हिंदी में मुझे इस तरह के रोल नहीं मिलेंगे, तो कैसे मैं कर पाऊंगी।<br />
<span style="background-color: orange;">आप अपने को खूबसूरत बनाये रखने के बारे में ज्यादा सोचती हैं या अपने व्यक्तित्व के बारे में ?</span><br />
- व्यक्तित्व मेरे लिए ज्यादा मायने रखता है। क्योंकि हम लोगों की पब्लिक में एक अलग ही इमेज होती है। कई बार हम उदाहरण बनते हैं। मेरा मोटो ये है कि ऑडियंस के जहन में यादगार मौजूदगी हो। मुझे लगता है कि इतने सारे मेरे फैन हैं, उनके प्रति मेरी रिस्पॉसबिटी बनती है कि मेरे अंदर जो जुनून है, आत्मविश्वास है और मेरी जो पर्सनॉलिटी है, वो मैं हर लड़की मैं पैदा करने में एक कारक बनूं। दूसरी बात जो आपने सौंदर्य की पूछी, तो वो कायम रखना ही पड़ता है। क्योंकि ये हमारी इंडस्ट्री के लिए जरूरी है। इसकी अहमियत को नकारा नहीं जा सकता । दर्शक हमें स्क्रीन पर देखने आते हैं।<br />
<span style="background-color: orange;">क्या इसको लेकर कभी दबाव महसूस हुआ?</span><br />
- मेरे लिए ये दबाव नहीं, बल्कि हकीकत है। अगर किसी पब्लिक स्पेस पर मेरे पास आकर ऑटोग्राफ लेने, साथ में फोटो खिंचाने की बात कहते हैं, तो मुझे अच्छा ही लगता है। क्योंकि यही तो मेरी कमायी है। ये लोग ही तो हैं, जो मुझे प्यार करते हैं। इन्हीं के रिश्ते से हमारा वजूद है। जिस दिन ये रिश्ता कायम नहीं रहा, हम कुछ नहीं रहेंगे। हां कभी बहुत अधिक भीड़ हो जाने पर सिक्यूरिटी प्राब्लम हो जाती है।<br />
<span style="background-color: orange;">क्या कला और संवेदनशीलता को एक दूसरे का पूरक मानती हैं ?</span><br />
- हां, संवेदनशीलता से कलाकार की क् वालिटी बढ़ती है। इस दिशा में आगे बढऩे से नयी दिशा मिलती है। दूसरों की भावनाएं समझने की क्षमता आती है। देखिये हम कलाकारों की जिंदगी एक समय के बाद मैकेनिकल हो जाती है। एक रूटीन में बंध जाती है। कैमरे के सामने ये करो, वो करो, हमें मैकेनिकली लोगों के साथ काम करना पड़ता है, जिनकी आदतें हमें अच्छी नहीं लगती, उनके साथ भी बातें करनी पड़ती हैं। ऐसे में सहजता और संवेदनशीलता जैसे तत्व एक कलाकार के लिए जरूरी हो जाते हैं।<br />
<span style="background-color: orange;">गूगल पर आपका नाम सर्च करते ही कुछ कामुक वीडियो आ जाते हैं। क्या कभी आपको लगा कि आपके पति इसे लेकर असहज महसूस कर रहे हैं?</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpqCqHMpoevEC3cRyUTzPkIeCNCSXqjt84pjR6IJjRMT8Cp-2lX45L2UrqRtbEScOXNeGicwGSdPY1wS34v9O9oAJRAi_4o7eF1_KlyscF1t9hX29llBtY7UWoROy20ikzf_sHQRPGMBA/s1600/PK_27_MU_08F.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="157" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpqCqHMpoevEC3cRyUTzPkIeCNCSXqjt84pjR6IJjRMT8Cp-2lX45L2UrqRtbEScOXNeGicwGSdPY1wS34v9O9oAJRAi_4o7eF1_KlyscF1t9hX29llBtY7UWoROy20ikzf_sHQRPGMBA/s320/PK_27_MU_08F.jpg" width="320" /></a></div>
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-मेरे पति मुझसे बोल चुके हैं कि देखो यू ट्यूब पर तुम्हारे कैसे-२ वीडियो आते हैं। हमारा बेटा भी बड़ा हो रहा है। तो मैंने उनसे कहा, ''मेरे ऐसे काम भी हैं, जिसके लिए मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार सहित कई बड़े पुरस्कार मिल चुके हैं। लेकिन वो लोग यू ट्यूब पर पहले उसको नहीं डाले। ये सब टेस्ट ऑफ आडियंस के पैमाने पर चल रहा है ना कि टेस्ट ऑफ आट्र्स पर। इस बारे मैं मैं अपने १० वर्षीय बेटे से भी बात कर चुकी हूं।<br />
<span style="background-color: orange;">क्या आप सुचित्रा सेन की बायोपिक में काम कर रही हैं?</span><br />
उनकी जीवनी से थोड़ी बहुत मिलती एक फिल्म कर रही हूं। लेकिन यह पूरी तरह से उनकी बायोपिक नहीं है। लेकिन अगर मुझे उनकी बायोपिक फिल्म में काम करने का मौका मिले,तो मैं जरूर करूंगी। क्योंकि सुचित्रा सेन मेरी ऑल टाइम फेवरिट हैं। </div>
Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-69396345062416474022015-07-18T11:13:00.003-07:002015-07-18T11:13:25.300-07:00नि:स्वार्थ प्रेम की मार्मिक कहानी 'बजरंगी भाईजान'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4K8mhjFiLCSros3V_6yHokuM-lV47fOmoyKLHe2JcSOQ-PxuzyoS5vmxpMchJqJeShO22Kogr1ppwfQyD8IrtDk8aU8_pvS0A0Ucx827bv2ys0ufHUFrI0cOuERDKB096VNcyYfzhvks/s1600/PK_19_.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4K8mhjFiLCSros3V_6yHokuM-lV47fOmoyKLHe2JcSOQ-PxuzyoS5vmxpMchJqJeShO22Kogr1ppwfQyD8IrtDk8aU8_pvS0A0Ucx827bv2ys0ufHUFrI0cOuERDKB096VNcyYfzhvks/s320/PK_19_.jpg" width="207" /></a></div>
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Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-37331455205869765482015-07-14T09:42:00.001-07:002015-07-14T09:42:10.525-07:00ऐतिहासिक धरातल पर कल्पना का भव्य महल 'बाहुबली' <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgKA9brU8fXZQVnlhmW_GtYDSaPOpa3nWvjdI6Pw5ITc9Bph6itWbFuprjw1fjDxxxT0g2_Sv-Na68ZlST2gxXZV9_2uf9rLHQrQr7DfySCk0FL_kQ2-iAxdBmhSEWZljinrOd2MlfxioM/s1600/PK_1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="147" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgKA9brU8fXZQVnlhmW_GtYDSaPOpa3nWvjdI6Pw5ITc9Bph6itWbFuprjw1fjDxxxT0g2_Sv-Na68ZlST2gxXZV9_2uf9rLHQrQr7DfySCk0FL_kQ2-iAxdBmhSEWZljinrOd2MlfxioM/s320/PK_1.jpg" width="320" /></a></div>
' प्रातःकाल' में प्रकाशित 'बाहुबली' की समीक्षा </div>
Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-47337652074983807422015-06-19T10:05:00.001-07:002015-06-19T10:05:10.022-07:00फिल्म 'एबीसीडी-२' की समीक्षा - कमजोर नींव पर आकर्षक नक्काशी है 'एबीसीडी-२'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
किसी भी फिल्म की बुनियाद कहानी ही होती है, जिसके आधार पर फिल्म के अन्य पहलू आकार लेते हैं। लेकिन 'एबीसीडी-२' में कहानी की कमी है। इससे डांस स्पर्धाओं में वरुण धवन और श्रद्धा कपूर सहित सभी कलाकारों का लुभावन डांस भी ऊपरी नक्काशी बनकर रह गया है। निर्देशक रेमो डिसूजा ने पूरा ध्यान केवल कोरियोग्राफी पर लगा रखा है। भव्य सेट से लेकर लाइटिंग व्यवस्था तक से इसका स्पष्ट आभास होता है। फिल्म में वरुण और श्रद्धा के रोमांटिक दृश्यों की अपेक्षा रहती है, लेकिन रेमो रोमांस, राष्ट्र प्रेम, जज्बा, स्वाभिमान और भावुकता को टुकड़ों में छूकर आगे बढ़ गये हैं। इससे ये सारे प्रसंग सतही रह गये हैं और दिलो दिमाग पर अपना असर नहीं छोड़ पाते हैं।<br />
एक तो कमजोर कहानी, दूसरे १५४ मिनट की एक के बाद एक होती नृत्य प्रतियोगिता वाली फिल्म को लेकर कोई एकाग्र कैसे हो सकता है। अभिनय की बात करें तो प्रभु देवा भले ही अच्छे डांसर हैं लेकिन पर्दे पर डांस गुरु की भूमिका निभाते नहीं जमे। उनके चेहरे पर अधिकांश एक ही भाव दिखते रहे। बाकी कलाकारों को अभिनय से ज्यादा अपने नृत्य कौशल को प्रदर्शित करना था, जिसे उन्होंने अंजाम भी दिया है। वाकई कलाकारों के नृत्य पर लगे श्रम को यदि कहानी का सहयोग मिल गया होता, तो देखना कुछ मनोरंजक लगता। छोटे से रोल में आयीं लोरेन गॉटलिब प्रभावित कर गयीं। इसी तरह स्पेशल अपीरियंस में टिस्का चोपड़ा और पूजा बत्रा हवा के झोंके का अहसास करा गयी।<br />
<br />
स्टार - दो </div>
Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-52689493781212313392015-06-18T09:07:00.004-07:002015-06-18T09:07:56.663-07:00 गीत - फलों की डाली नदी की धारा और ये मस्त हवायें <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8000001907349px;"><span style="color: red;">फलों की डाली नदी की धारा और ये मस्त हवायें </span></span><br />
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8000001907349px;">
<div>
कभी न रखना भेद किसी से हमको पाठ पढ़ा<span style="font-size: 12.8000001907349px;">यें</span> </div>
<div>
फूल ना सोचे सामने वाला है दुर्जन या साधू </div>
<div>
फर्ज निभाता जाता अपनी लुटाके सारी खुशबू </div>
<div>
काली घटायें उगता सूरज धाम -धाम को जाएं </div>
<div>
कभी न रखना भेद किसी से हमको पाठ पढ़ा<span style="font-size: 12.8000001907349px;">यें</span></div>
<div>
हर नाड़ी में लाल रक्त ही ना कोई दूजा रंग है </div>
<div>
मानवता से बढ़कर जग में ना कोई पूजा ढंग है </div>
<div>
जाति ना पूछें धर्म ना पूछें सबको गले लगायें </div>
<div>
कभी न रखना भेद किसी से हमको पाठ पढ़ा<span style="font-size: 12.8000001907349px;">यें</span> ।।</div>
</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8000001907349px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8000001907349px;">
<br /></div>
</div>
Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-62083583585153185012015-06-17T07:34:00.000-07:002015-06-17T07:34:39.594-07:00हमको बाधाओं की धूप से डर नहीं <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: red;">हमको बाधाओं की धूप से डर नहीं </span><br />
सिर पे माँ की दुआओं का आँचल जो है<br />
रुत बसंती रहे या ख़िज़ा बाग़ में<br />
ना फिकर क्या लिखा है मेरे भाग में<br />
नीले अम्बर से पानी गिरे ना गिरे<br />
एक उमड़ता हुआ नेह का बादल तो है। …<br />
मन में आँगन की खुशियां बसीं इस कदर<br />
याद करते ही ग़म सारे हों दर बदर<br />
अब निशान ना दिखे पर विश्वास में<br />
वो सुरक्षा का एहसास काजल तो है …<br />
<br />
अश्वनी राय </div>
Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-23537961117936288032015-06-12T09:47:00.000-07:002015-06-13T05:41:37.700-07:00अधूरी रह गयी 'हमारी अधूरी कहानी' की संवेदना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjEBcpQK8gLo4JTHjV-w_dhoikeL0G3vnYU_6MqtXnOGFskeF4iV6tHfEyGZEWbm8zO4EXQlblJO8lVsfk3kPgfhE6XyT1SRQuld6ohfQuGG5F3cyzVk3LXA3LXO4sDkdmXiX6r3sNWizQ/s1600/hama.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="251" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjEBcpQK8gLo4JTHjV-w_dhoikeL0G3vnYU_6MqtXnOGFskeF4iV6tHfEyGZEWbm8zO4EXQlblJO8lVsfk3kPgfhE6XyT1SRQuld6ohfQuGG5F3cyzVk3LXA3LXO4sDkdmXiX6r3sNWizQ/s320/hama.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
महेश भट्ट फिल्म 'हमारी अधूरी कहानी' के जरिये काफी सालों बाद पुन: स्क्रिप्ट राइटिंग में उतरे। उन्होंने मध्यम वर्गीय समाज में महिलाओं के संदर्भ में व्याप्त रूढिय़ां और परिस्थितियों के बीच एक औरत के हालात को चित्रित किया है। इसके लिए दक्ष कलाकारों विद्या बालन, इमरान हाशमी और राजकुमार राव का चयन किया गया है। लेकिन घटनाक्रम की कमी के कारण संवेदना उभारने की पूरी कोशिश एक नाटक बनकर रह गयी है। यद्यपि विद्या बालन ने एक बोझिल वैवाहिक जीवन में विवाहेत्तर संबंधों के बीच के अंतर्विरोधों को बखूबी पर्दे पर साकार किया है। लेकिन निर्देशक मोहित सूरी ने विद्या को कुछ ज्यादा ही रुला दिया है। कुछ दृश्यों में उनक ा रुदन प्रभावहीन लगता है। सबसे महत्वपूर्ण बात कि यह अंतर्विरोध पश्चाताप के बजाय रवायतों को लेकर दिखता है। फिल्म हरि के माध्यम से पुरुषों के काइयापन का नंगा चित्र प्रस्तुत करती है।<br />
पति हरि (राजकुमार राव) के गुम होने के बाद बेटे साथ रहती वसुधा (विद्या बालन) एक होटल में काम करती है। हरि के आंतकवादी होने का सबूत लेकर पुलिस अक्सर वसुधा से सवाल करती रहती है। सउदी अरब का बड़ा होटल व्यवसायी आरव (इमरान हाशमी) उस होटल को खरीद लेता है। वह वसुधा की ईमानदारी और सूझ बूझ का कायल हो मोटी सेलरी पर अपने सउदी के होटल में काम करने का प्रस्ताव देता है। वसुधा भी पति के छाये से बेटे को दूर रखने सउदी आ जाती है। आरव और वसुधा को प्यार हो जाता है। इसी दौरान हरि भी अचानक उपस्थित हो वसुधा से अपनी बेगुनाही की बात कहता है। हरि को पुलिस गिरफ्तार कर लेती है। वसुधा हरि को बचाने आरव से मदद मांगती है। दूसरी ओर हरि के आतंकवादी होने की स्वीकृत पर उसे मौत की सजा हो चुकी है। आरव हरि को बचाने छत्तीसगढ़ के बस्तर पहुंच प्रत्यक्ष गवाह की गवाही भेजता है, जिस पर हरि छूट जाता है, लेकिन लैंड माइंस के विस्फोट से अपनी जान गंवा बैठता है। वसुधा को जब पता चलता है कि हरि उसके जज्बात का फायदा उठा जानबूझ कर गुनाही स्वीकार किया रहता है, ताकि वह उसकी कुर्बानीतले दबकर आरव से शादी न कर सके, तब वह हरि को छोड़ भाग जाती है।<br />
फिल्म का मूल मंतव्य घर से भागी वसुधा से हरि के मिलने पर उभरकर आता है, जब अब तक केवल रोतीवसुधा पुरुष प्रधान समाज में नारी की पराधीनता के एक-एक पर्दे उधेड़ती है। राजकुमार राव एक बार फिर अपनी छाप छोड़ गये हैं। इमरान एक अलग रूप में आये और भाये भी। फिल्म के कुछ गाने अच्छे हैं। टाइटल सांग पात्रों के यथार्थ को व्यक्त करता है। लोकेशन अच्छे लगते हैं।<br />
स्टार : ढाई <br />
<div>
<br /></div>
</div>
Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-86435825496259726932015-06-06T04:39:00.002-07:002015-06-06T04:39:35.838-07:00ओढ़े हुए व्यक्तित्व-रूढि़वादिता पर चोट करती नारी सशक्तिकरण की फिल्म है 'दिल धड़कने दो'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBCa6iPOtTyS38_qAzNyPgTIGiTcbdeN3zko_2dsq0DnhH_l3T49MhKIDVSDwB9r9hvgYzMfWbhZM9VMXwVsdFLXO4r3cKY6D3QswG4SyacbIwhgjIrNnR_MzgV3dmpxzE-hWgd2Q5Jj0/s1600/REVIEW.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBCa6iPOtTyS38_qAzNyPgTIGiTcbdeN3zko_2dsq0DnhH_l3T49MhKIDVSDwB9r9hvgYzMfWbhZM9VMXwVsdFLXO4r3cKY6D3QswG4SyacbIwhgjIrNnR_MzgV3dmpxzE-hWgd2Q5Jj0/s320/REVIEW.jpg" width="242" /></a></div>
<br />
पुरुष प्रधान समाज, ओढ़े हुए व्यक्तित्व और रूढि़वादिता पर चोट करती एक छोर से महिला सशक्तिकरण की फिल्म है 'दिल धड़कने दो'। चुटीले संवाद और कलाकारों का अभिनय इस फिल्म के मजबूत पक्ष हैं। जोया अख्तर के निर्देशन में बनी 'दिल धड़कने दो' कथानक के स्तर पर बांधती हैं, लेकिन प्रस्तुतिकरण में बिखराव के कारण लगभग १७० मिनट की फिल्म देखते कई बार ध्यान भटक जाता है। इंटरवल का इंतजार कुछ ज्यादा लगता है। फिल्म में एक अहम पात्र डॉग प्लूटो है, जिसे आवाज दी है आमिर खान ने। प्लूटो सभी पात्रों, स्थितियों और मानवीय विसंगतियों पर कमेंट कर उनका छिद्रांवेषण करता चलता है।<br />
कहानी उच्च वर्ग के कमल मेहरा (अनिल कपूर) परिवार की है। बात-बात में अपनी मेहनत के बूते एक मुकाम बनाने की शेखी बघारने वाले कमल मेहरा की कंपनी आर्थिक संकट से गुजर रही है। कमल अपनी शादी की ३०वीं वर्षगांठ पर क्रुज पर एक शानदार पार्टी देने वाले हैं। पत्नी नीलम (शेफाली शाह)की सलाह पर पूर्व परिचित सफल उद्योगपति को पार्टी में निमंत्रित कर उसकी एकलौती बेटी से अपने बेटे कबीर (रनवीर सिंह) का विवाह कर कंपनी का संकट दूर करने की योजना बनाते हैं। लेकिन निठल्ला और प्लेन उड़ाने का शौकीन कबीर डांसर फराह अली (अनुष्का शर्मा)को दिल दे बैठा है। अपने बूते कारोबार की दुनिया में काफी नाम कमा चुकी कमल मेहरा की बेटी आयशा (प्रियंका चोपड़ा) अपने पति मानव (राहुल बोस) के साथ खुश नहीं है। वह उससे तलाक लेना चाहती है, लेकिन अपने पिता के शख्त रवैये से जाहिर नहीं कर पाती। वह अपने पिता द्वारा उपेक्षित अपनी मां से भी कहती है कि तूने पापा से डिवोर्स क्योंनहीं लिया। क्रुज पर कमल मेहरा के मैनेजर के बेटे सन्नी (फरहान अख्तर) की उपस्थिति हो चुकी है। आयशा और सन्नी$ कभी एक दूसरे को चाहते थे, लेकिन कमल ने उन्हें दूर कर $िदया था। अंतत: कबीर के अंदर का गुबार फूट पड़ता है और अब तक डरा सहमा सा लड़का पिता से उनकी फरेबी मर्यादा, उनके विवाहेत्तर संबंध और रूढि़वादिता के नीचे दब दम तोड़ते बच्चों के अरमानों पर बहस करता है। कमल मेहरा के हृदय परिवर्तित के साथ कहानी का सुखांत होता है। लेकिन क्लाइमेक्स में फिल्म का शिथिल हो जाना खटकता है।<br />
फिल्म के गाने और उनके फिल्मांकन अच्छे लगते हैं। अनिल कपूर ने एक पारंपरिक पिता के किरदार में जमे हैं, शेफाली शाह ने भी उपेक्षित पत्नी के एकाकीपन से रूबरू कराया है। प्रियंका चोपड़ा मुरीद बना गईं, तो रनवीर का ऊर्जावान निठल्लापन भी भा गया। छोटे-छोटे रोल में आये फरहान अख्तर और अनुष्का शर्मा फिल्म को गति दे गये हैं। </div>
Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-6826458777385455352015-05-29T09:50:00.004-07:002015-05-29T09:51:51.895-07:00शूटिंग मेरी जिंदगी का बेस्ट मोमेंट : मीनाक्षी दीक्षित<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg536SWm3hOOH9P9Pb5aKvu46uRoR5-a-wXcGnUxea_5biZmiaWh34CJrOGy-YiBAbulpWrp5FHgRempG53-CIlCv1OxVt9wpYxbJNVHHWrIMpFg_8IRGfBp7O3JsET8mYjNQdssSG1eFQ/s1600/photo+1+%25284%2529.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg536SWm3hOOH9P9Pb5aKvu46uRoR5-a-wXcGnUxea_5biZmiaWh34CJrOGy-YiBAbulpWrp5FHgRempG53-CIlCv1OxVt9wpYxbJNVHHWrIMpFg_8IRGfBp7O3JsET8mYjNQdssSG1eFQ/s640/photo+1+%25284%2529.JPG" width="426" /></a></div>
<b><span style="color: red;">आज हिंदी फिल्मों से साउथ की फिल्मों से कई हीरोइनें आ रही हैं। लेकिन वो साउथ की नहीं होती। अपने बारे में बतायें ? </span></b><br />
लखनऊ से हूं, मुंबई में रहती हूं, साऊथ में काम करती हूं और अब 'पी से पीएम तक" से हिन्दी फिल्मों की शुरुआत कर रही हूं। पापा वकील और भाई-बहन इंजीनियर हैं। बचपन से ही गाने-डांस प्रतियोगिता में जीतती रही हूं। चुपके से डांस रियलटी शो 'नचले विथ सरोज खानÓ के लिए ऑडिशन दिया और सेलेक्ट होने के बाद थोड़ी जिद की। पापा अपोजिट थे, लेकिन मम्मी, पड़ोसियों और सरोज खान द्वारा मेरी तारीफ सुन वे भी राजी हो गये।<br />
<br />
<b><span style="color: red;"> सुना है आपके चयन से पहले कुंदन शाह करीब १०० लड़कियों के आडिशन ले चुके थे। कैसे मिली यह फिल्म ?</span></b><br />
- ऑडिशन देकर ही मिली। पहले उनके कास्टिंग डायरेक्टर ने मेरा ऑडिशन लिया, फिर मुझे चार बार कुंदन सर के समक्ष आडिशन देना पड़ा। वो भारतीय लुक खोज रहे थे। माधुरी दीक्षित और श्री देवी की जोन का चेहरा चाहते थे। मैं तो हर टेक अलग-अलग देती हूं। ये बात उन्हें अच्छी लगी। बाद में उन्होंने कहा भी ''मैं इसे ग्रूम करूंगा, तो इससे वो किरदार हासिल कर लूंगा, जिसकी मुझे अब तक तलाश थी। <br />
<span style="color: red;"><b><br /></b>
<b>हिंदी की पहली ही फिल्म में प्रोस्टीच्यूट का रोल स्वीकार करते अपनी इमेज को लेकर डर नहीं <br />लगा ?</b></span><br />
-डर किस लिए ! वो एक किरदार है और मैं एक एक्ट्रेस। देखिये एक तो मैं आउट साइडर हूं। पारिवारिक पृष्ठभूमि के स्तर पर फिल्म इंडस्ट्री से मेरा वास्ता नहीं है। ऐसे में हमें फिल्में चुनने के मौके मिलने से रहे। मैं तो अपने को बहुत भाग्यशाली मानती हूं कि कुंदन शाह जैसे बड़े निर्देशक के साथ काम मिला। वरना यह फिल्म तो किसी न्यू कमर लड़की को मिलने की बात सोची भी नहीं जा सकती। क्योंकि बाद में मुझे पता चला कि कुंदन सर बहुत पहले ही यह फिल्म माधुरी दीक्षित को लेकर बनाने की सोच रहे थे। इसी से इसके लेबल का अंदाजा लगाया जा सकता है।<br />
<br />
<b><span style="color: red;">'पी से पीएम तक" में आपका किरदार कैसा है ?</span></b><br />
- मेरा किरदार लो लाइन वेश्या कस्तूरी का है। वह अपनी जीविका के लिए भागदौड़ करते जहां पहुंचती है, वहां चुनाव हो रहे हैं । कस्तूरी उसी चक्रव्यूह फंस जाती है और चार दिन में सीएम बन जाती है। उसके बाद वह पीएम के लिए ताकतवर उम्मीदवार भी बन जाती है। फिल्म में उसे पीएम बनते दिखाया नहीं गया है।<br />
<b><span style="color: red;"><br /></span></b>
<b><span style="color: red;">कस्तूरी को पर्दे पर साकार करने के लिए किस तरह से तैयारी की ?</span></b><br />
- कुछ पुरानी स्क्रिप्ट पढ़ी। पहचान छुपाकर मुंबई के रेड लाइट एरिया में जाकर कुछ प्रोस्टीच्यूट से मिली। वो अपनी आप बीती बताते रो पड़ती। हर एक की दर्द भरी कहानी है। उनके घर देख आप रो पड़ेंगे। बड़ी अजीब जिंदगी है उनकी। कुछ तो इतनी खूबसूरत मिली कि क्या कहने। उफ्फ कैसी-कैसी परिस्थितियों का वो सामना कर रही हैं। फिर भी खुश हैं।<br />
<br />
<b><span style="color: red;">आप इमोशनल हो गयीं। आपकी आंखों में आंसू दिख रहे हैं। फिल्म इंडस्ट्री में किसी की अतिरिक्त भावुकता को कमजोरी समझ फायदा उठाने की भी खबरें आती हैं ?</span></b><br />
-आप चाहे इसे मेरी कमजोरी कहें या ताकत, लेकिन मैं इसे अपनी ताकत मानती हूं। क्योंकि मुझे किसी भी तरह के इमोशन लाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। मुझे लगता है अगर आप इंसानियत को नजदीक से नहीं महसूस कर सकते, तो एक अच्छा कलाकार भी नहीं बन सकते। अपनी सच्चाई से क्या छुपना । जो हूं सो हूं।<br />
<br />
<b><span style="color: red;">कुंदन शाह के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा ?</span></b><br />
-मेरे लिए बोर्डिंग स्कूल की टे्रनिंग का अहसास रहा । बस उन्होंने डंडे नहीं मारे। कुंदन सर अपने आप में एक इंस्टीच्यूट हैं। वो काफी जीनियस है। फिल्म सहित कई क्षेत्रों में उनकी गहरी समझ है। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान जो मैंने उनसे सीखा है, वो आगे मेरे पूरे करियर में काम आने वाला है।<br />
<b><span style="color: red;"><br /></span></b>
<b><span style="color: red;">क्या अब साउथ की फिल्मों को अलविदा कह आयी हैं ?</span></b><br />
-नहीं नहीं ! अब भी वहां के तीन प्रोजेक्ट शूट कर रही हूं। मैं अपनी जमी जमाई दुकान क्यों छोड़ूंगी। साउथ की १० फिल्में करने के बाद वहां मेरा मार्केट है। लोग मेरा रिस्पेक्ट करते हैं। मैं हिंदी फिल्म इंडस्ट्री और साउथ में बैलेंस करके चलूंगी।<br />
<br />
<b><span style="color: red;">क्या शुरू से अभिनेत्री बनने का सपना था ?</span></b><br />
-मैं बहुत साधारण लड़की हूं। बिल्कुल आपके घर की लड़कियों जैसी। स्क्रीन पर मेरा बिल्कुल अलग रूप होता है। देखिये मैं जब शूटिंग कर होती हूं, तो अपनी जिंदगी का बेस्ट मोमेंट जी रही होती है। इससे ज्यादा खुशी मुझे किसी काम से नहीं मिलती। इससे अपनी च्वॉइस का पता चल जाता है। जब पांचवीं में थी तभी से डांस स्पर्धा में भाग लेती रही हूं। तब कहां पता था किधर जाना है। मैं माधुरी की फैन रही हूं। न जाने उनके कितने गानों पर डांस करके अवॉर्ड जीती हूं। भगवान से प्रार्थना है कि उनके जैसे कुछ गुण भी मुझे दे दे, तो भाग्य खुल जाये। <b><span style="color: blue;"> -अश्वनी राय </span></b><br />
</div>
Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-89232127032820572142015-04-13T07:31:00.001-07:002015-04-13T07:31:03.421-07:00movie review Ek Paheli Lila<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiul5yIkRSovVj7pxiQgo4MZZNC6_C4AUIPPMpK7NhEp4Zn2qINFMSn6Nf5C6qlAVtin_POqXg5N56vVZ8lVITdw3YcTdL6MLwT2Y1_-zxLb1VESvcFWGn9UEga-vWaN4OUAIjLYuuvN0Y/s1600/P1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiul5yIkRSovVj7pxiQgo4MZZNC6_C4AUIPPMpK7NhEp4Zn2qINFMSn6Nf5C6qlAVtin_POqXg5N56vVZ8lVITdw3YcTdL6MLwT2Y1_-zxLb1VESvcFWGn9UEga-vWaN4OUAIjLYuuvN0Y/s1600/P1.jpg" height="242" width="320" /></a></div>
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Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-88445149510532711392015-03-29T06:05:00.000-07:002015-03-29T06:05:30.246-07:00घर बैठे इंतजार करने से अच्छा है काम करते हुए मंजिल की तरफ बढऩा: निकिता दत्ता <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<i>लाइफ ओके पर आ रहे शो 'ड्रीम गर्ल- एक लड़की दीवानी सी' के साथ मिस इंडिया प्रतियोगिता की फाइनलिस्ट रही निकिता दत्ता ने फिल्म से शुरुआत के बाद सीरियल में </i><br />
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<i><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEirAXYaeS59udXUgXTIRr1M7iRr40Jn7viKraPmnY2W2-JOQWgGEwnDy8VNo-pDWqMeNRDw5u9-8Tc2rPJLtlyQJCSXPtgMGRj-vBo7TycqJivMiOr7iuHm16HTOWVbUhUQ1RTfFRSnf1I/s1600/Rai.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEirAXYaeS59udXUgXTIRr1M7iRr40Jn7viKraPmnY2W2-JOQWgGEwnDy8VNo-pDWqMeNRDw5u9-8Tc2rPJLtlyQJCSXPtgMGRj-vBo7TycqJivMiOr7iuHm16HTOWVbUhUQ1RTfFRSnf1I/s1600/Rai.jpg" height="212" width="320" /></a></i></div>
<i>दस्तक दी हैं। शो की मुख्य किरदार जोधपुर की लड़की लक्ष्मी, जो काफी परेशानियों के बीच अभिनेत्री बनना चाहती है के सपनों और सपनों के लिए उसकी उड़ान की चाहत को पर्दे पर आयाम देती निकिता की कहानी उन्हीं की जुबानी- </i><br />
अभिनय की शुरुआत फिल्मों से कर टीवी शो में आगई। क्या फिल्मों से मोह भंग हो गया ?<br />
- नहीं-नहीं , ऐसा बिलकुल नहीं है। मैं कभी प्लानिंग करके नहीं चलती कि मुझे ये करना है, वो करना है। मेरे पास जो काम आता है और वो मुझे पसंद भी आये तो मैं करती जाती हूं। पिछले साल फिल्म 'लेकर हम दीवाना दिल' की । इस साल जब 'ड्रीम गर्ल- एक लड़की दीवानी सी' का प्रस्ताव आया, तो मुझे इसका कांसेप्ट बहुत पसंद आया। खासकर जोधपुर की लड़की लक्ष्मी के किरदार के अनूठेपन ने मुझे यह रोल करने के लिए प्रेरित किया कि कैसे यह लड़की हर समस्या का समाधान रखती है। मैं पर्सनली सास-बहू सीरियल की फैन भी नहीं हूं।<br />
सीरियल करने से पहले क्या डर नहीं लगा कि कहीं फिल्मों के दरवाजे बंद न हो जायें ?<br />
-देखिये मैं ज्यादा दूर की सोचती नहीं। पहले भी बताया कि जो पसंद का आता जाता है, करती जाती हूं। मेरा लॉजिक है कि फिल्म मिलनी होगी तो मिल जाएगी। हाथ पर हाथ धरे घर बैठकर किसी चीज का इंतजार करें उससे ज्यादा अच्छा है कि हम काम करते हुए अपने मनचाहे काम का इंतजार करें।<br />
आपने कहा जो आता है करती जाती हूं। इस सोच ने अब तक कैसे-कैसे काम करवा लिया ?<br />
-मैं तो आईएएस बनना चाहती थी। मेरे पापा डिफेंस सर्विस में रहे हैं। मेरे भाई, मेरे चाचा भी इसी लाइन में कोई विंग कमांडर तो कोई ब्रिगेडियर है। १०साल से मुंबई में हूं। यहीं ग्रेजुएशन लास्ट इयर में थी जब मिस इंडिया प्रतियोगिता में भाग लिया और फाइनल तक पहुंची। इसी के बाद दिशा बदल गयी। ग्रेजुएशन के बाद जूम टीवी में एंकर का जॉब मिल गया, फिर स्टार स्पोट्र्स पर २०-२० वल्र्ड कप की एंकरिंग और फिल्म 'लेकर हम दीवाना दिल' की । साथ ही कई सारे विज्ञापन भी किये।<br />
'ड्रीम गर्ल' की खासियत क्या है ? क्या यह छोटे शहरों से यहां आने वाली लड़कियों के लिए गाइड लाइन होगी ?<br />
— मैं जो रोल लक्ष्मी का कर रही हूं, यह लड़की बहुत सीधी सादी न होकर थोड़ी नॉटी है, लेकिन यह कोई गलत रास्ता नहीं अपनाती। यह छोटे शहर से मनोरंजन इंडस्ट्री में काम करने की इच्छा वाली लड़की की कहानी है। एक तरह से यह शो उन लड़कियों के लिए गाइड लाइन के रूप में एक नजरिया प्रस्तुत करेगा। जब हम जोधपुर में इसकी शूटिंग कर रहे थे, तब कई लड़कियों ने मुझसे कहा कि दीदी हमें भी आप जैसे बनना है। लेकिन ऐसी लड़कियों के साथ समस्या यह होती है कि उन्हें इस फिल्ड की सही जानकारी नहीं होती। दूसरे उन्हें पारिवारिक सपोर्ट नहीं मिलता। इस शो की सबसे बड़ी खासियत है कि लक्ष्मी अपने पापा को तैयार करके आती है, न कि बगावत करके। व्यक्तिगत तौर पर भी मैं आज अपने फैमिली सपोर्ट की वजह से ही यहां हूं।<br />
सीरियल में काम का दबाव अधिक रहता है। कैसा लग रहा है ?<br />
- व्यस्तता तो है । फिल्म या एड में काम आराम से होता है। लेकिन सीरियल में काफी जल्दबाजी रहती है। अभी मैं यूज टू होने की कोशिश कर रही हूं। आगे के दिनों को गिनती हूं कि इस दिन छुट्टी रहेगी और पूरी तरह आराम करूंगी।</div>
Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-45848401052863319642015-02-25T08:50:00.001-08:002015-02-25T08:50:14.568-08:00Film Review - Badalapur<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWYSQ5Swcc74c6tJOYANyDekAhOn07t6bjev0uMh-sivWxYnRILBVmIF3Q6kWmXhWt9TNV2S7aAdNMIRA534zc40uHG5Z38YcbfTJTpYuhmzV-vI17RR4hXTPzdnbirIWKydtq-Hm7VJU/s1600/PK_23_MU_08F.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWYSQ5Swcc74c6tJOYANyDekAhOn07t6bjev0uMh-sivWxYnRILBVmIF3Q6kWmXhWt9TNV2S7aAdNMIRA534zc40uHG5Z38YcbfTJTpYuhmzV-vI17RR4hXTPzdnbirIWKydtq-Hm7VJU/s1600/PK_23_MU_08F.jpg" height="320" width="210" /></a></div>
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Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-2884298007865773622015-02-09T08:22:00.001-08:002015-02-09T08:22:55.967-08:00फिल्म समीक्षा : 'षमिताभ'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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स्टार : तीन<br />
'षमिताभ' का मूल्यांकन करते यदि अमिताभ बच्चन के अभिनय को सामने रखकर विचार करें, तो फिल्म की रेटिंग काफी ऊपर रखने की इच्छा होगी, लेकिन अगर बिग बी को परे रखकर पूरी फिल्म पर नजर दौड़ायें तो रेटिंग स्तर एक पर आ जाएगी। बिग बी का जिवंत अभिनय देखने के लिए २.३० घंटे का समय भी झेला जा सकता है। क्योंकि यह अभिनय एक अविस्मरणीय याद का हिस्सा बन जाएगा। <br />
निर्देशक आर. बाल्कि ने केवल चाहत के सहारे सपने के साकार होने की कहानी दिखायी है। बचपन से ही मूक दानिश (धनुष) फिल्मों में हीरो बनने का ख्वाब लिये फिरता है। वह इगतपुरी से मुंबई आ जाता है। यहां उसके संघर्ष को सहायक निर्देशक अक्षरा (अक्षरा हसन) का सहयोग मिलता है। मुंबई कभी हीरो बनने आये असफल पियक्कड़ अमिताभ सिन्हा (अमिताभ बच्चन) की आवाज के उपयोग से मूक दानिश सुपर स्टार बन जाता है। आगे इस सफलता में अपनी-अपनी भूमिका के योगदान को लेकर दोनों के अहम् टकराने से अलग होने और फिर एक होने की कहानी है।<br />
यद्यपि बाल्की एक नई कहानी के साथ आये हैं। लेकिन खटकने वाली बात उनके मुख्य हीरो के विकासक्रम को लेकर आती है। इस हीरो की परिभाषा किसी भी संस्कृति के पैमाने पर देना मुश्किल है। यही कारण है कि दानिश को पर्दे पर साकार करते धनुष की सफल कोशिश भी कहानी में दिलचस्पी नहीं जगा पाती। क्योंकि दानिश का चरित्र चित्रण ही खोखला है। मध्यांतर के बाद तो कुछ दृश्यों में फिल्म बोझिल लगती है और ध्यान इधर-उधर भटकने लगता है। ७२ की उम्र में भी चुस्ती- फुर्ती से भरपूर अमिताभ बच्चन की जिंदादिली ही है कि ध्यान पुन: फिल्म का कायल हो जाता है। अपनी पहली ही फिल्म में अक्षर हसन अच्छी लगी हैं। फिल्म के गीत-संगीत अच्छे हैं। </div>
Ashwani Raihttp://www.blogger.com/profile/05238188418802748752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6155209209359166156.post-18915532119633840962015-01-25T08:29:00.001-08:002015-01-25T08:29:41.669-08:00Movie review Baby<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEipvgYkY7BEGatV-7rge1R0ifPuoku-3XvkD0DtIRPJthKDR1__L0F0J3OhE8OH5G2SfVQB5G4i_JY1lieW8BMRZlitdX7mgTXeSjCVdY9qJaSSUy38lh87UfWjBBJvHdUiPhD63gfac1w/s1600/Rai.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEipvgYkY7BEGatV-7rge1R0ifPuoku-3XvkD0DtIRPJthKDR1__L0F0J3OhE8OH5G2SfVQB5G4i_JY1lieW8BMRZlitdX7mgTXeSjCVdY9qJaSSUy38lh87UfWjBBJvHdUiPhD63gfac1w/s1600/Rai.jpg" height="153" width="320" /></a></div>
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