Tuesday, April 12, 2016

कॉमेडी को किसी दायरे में बांधना उचित नहीं : वीर दास

संता बंता के जोक से तो सभी परिचित हैं।  लेकिन फिल्म 'संता बंता' की  क्या खासियत है ?
- फिल्म की खासियत बताऊँ तो  इसकी कॉमेडी बहुत सिम्पल है, इनोसेंट है। इसमें कोई डार्कनेस नहीं है और न ही किसी तरह की होशियारी है। इसके दोनों पात्रों का दिल बिल्कुल सच्चा है, साफ है। कई सफल कॉमेडियन एक साथ काम किये हैं। फिल्म की शूटिंग फिजी के अच्छे लोकेशन में की गई है। ये बहुत स्वीट किस्म की फिल्म है। संता बंता दो दोस्त हैं। संता ने बंता को बचपन से सम्भाला है . दोनों पंजाब में रहे हैं . सरकार ने उन्हें एक सीक्रेट मिशन पर फिजी जाने के लिए हायर किया है।
आप एक सफल स्टैंडअप कॉमेडियन हैं। आपके लिए तो ये फिल्म आसान रही होगी ?
-आसान तो कोई फिल्म नहीं होती। दूसरे मैं पंजाबी भी नहीं हूँ। ऐसे में मुझे डॉयलॉग और लुक पर काफी काम करना पड़ा। बोमन के साथ मैंने पहले कभी काम नहीं किया था। लेकिन हम दोनों के बैकग्राउंड थिएटर है तो रिहर्सल भी किये थे।

आजकल कॉमेडी को लेकर विवाद भी हो रहे हैं।  क्या इसके लिए भी कोई आचार संहिता होनी चाहिए ?
-कॉमेडी के लिए किसी ना किसी को आधार बनाना ही पड़ता है। दर्शक को समझना चाहिए कि हर एक जोक किसी के ऊपर ही बनाया जाता है।  मैं नहीं समझता की कॉमेडी को किसी तरह के दायरे में बांधना चाहिए। अगर किसी को कोई जोक नहीं पसंद है, तो वो स्वतंत्र है कि उसे ना देखे। 

स्टैंडअप कॉमेडी और थियेटर की चुनौतियों में किस तरह की समानता और भिन्नता देखते हैं ?
-थियेटर में कई लोग होते हैं, जिनसे आपको मदद मिलती रहती है। सारा दारोमदार केवल एक व्यक्ति पर नहीं होता। थियेटर में सबकुछ एक प्लान के तहत सुनिश्चित होता है। थियेटर इंडिया में बहुत पुराना है। इसका आर्ट लेवल बहुत ऊंचा है। थियेटर दर्शक को गंभीर सोच में ले जा सकता है। लेकिन स्टैंडअप कॉमेडी में आप अकेले होते है। दूसरे इसकी दिशा भी पूर्व निर्धारित नहीं होती। आपको ऑडियंस का मूड भांपते हुए चलना पड़ता है। इसका ओर-छोर कहीं भी जा सकता है। हमारे यहां स्टैंडअप कॉमेडी नयी है। इसमें हमारा मकसद दर्शकों को सिर्फ हंसाना होता है। 

आपके पॉजीटिव और निगेटिव पॉइंट क्या हैं ?
-मेरा पॉजीटिव पॉइंट है कि मैं हमेशा एक्साइटेड रहता हूं। काम को लेकर सीरियस हूं और बहुत ही मेहनती हूं। मुझमें निगेटिव बात ये है कि मैं सोता बहुत कम हूं। घर पर ज्यादा समय नहीं दे पाता। क्योंकि कई करियर है। सबको संभालते चलना है। 

आप 2007 से फिल्म इंडस्ट्री में हैं। अपना मूल्यांकन किस तरह कर रहे हैं ?
 - देखिये मैंने कभी नहीं सोचा कि फिल्मों में आउंगा। इसलिए मेरी कोई लिस्ट नहीं है। आप इस इंडस्ट्री को देखिये, एक तरह से ये फैमिली ओरिएंटेड इंडस्ट्री लगती है। नजर दौड़ाइये कितने सेलीब्रिटीज के लड़के-लड़की भरे पड़े हैं। यहां हर एक का कोई गॉड फादर है। ऐसे में मैं अपने को खुश किस्मत मानता हूं कि मैं बिना फिल्मी बैकग्राउंड के यहां हूं।

आपके मुकाम में मेहनत और किस्मत का औसत क्या है ?
-मैं १०० फीसदी अंक अपनी मेहनत को दूंगा। क्योंकि मैंने अपने भाग्य के बारे में कभी सोचा नहीं। अगर आप ये सोचेंगे कि मेरी किस्मत कहां से आएगी, तो पागल हो जाएंगे। फिर आप न्यूरोलॉजी करने लगेंगे। मेरा मानना है कि  बस मेहनत पर फोकस करो और करते जाओ।

इस फिल्म की शूटिंग का अनुभव कैसा रहा ?
-बहुत अच्छा रहा। बोमन से मैंने काफी कुछ सीखा। जॉनी लीवर जी का मैं बचपन से फैन रहा हूं। नेहा और लिसा फनी हैं। फिजी हमने बहुत इंजॉय किया। 

एक स्टैंडअप कॉमेडियन में खास क्या होना चाहिए ?
- सबसे महत्वपूर्ण ये है कि जो आपके चश्मे हैं, उनसे आप जिंदगी के बीच क्या देखते हैं। उससे आपको क्या दिखता है। वो अगर स्पेशल न हो तो फिर आप अच्छे कॉमेडियन नहीं बन सकते ।

जोक को लेकर संता बंता जाना पहचाना नाम है। क्या इसी टाइटल से आ रही फिल्म को भी कोई फायदा होगा ?
 -पहले हमने ये सोचा था कि जो इसका टाइप ऑफ़ ह्यूमर है उसे न लिया जाय। यह फैमिली फिल्म है, बच्चों की फिल्म है। संता बंता जोक की एक बड़ी पहचान है, तो उससे पब्लिसिटी में फायदा होना ही है . लेकिन जिस तरह से इसे डायरेक्ट किया गया है  उससे आप फिल्म देखकर इसकी तारीफ़ करेंगे।       

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