Saturday, August 22, 2015

जज्बे से भरपूर प्यार के सामुदायीकरण की फिल्म 'मांझी द माउंटेन मैन'

बिहार के गया जिले के दलित दशरथ मांझी के रुहानी प्रेम की सच्ची घटना से प्रेरित 'मांझी द माउंटेन मैन' प्यार और जज्बे की ऐसी कहानी है, जिसमें व्यक्तिगत के साथ-साथ सामुदायिकता का भाव समाहित है। दशरथ की गर्भवती पत्नी फल्गुनिया पानी लाते पहाड़ से फिसलकर गिर गयी थी। उसके गहलोर गांव से वजीरगंज अस्पताल पहुंचे में पहाड़ होने सेहुई देरी के कारण फल्गुनिया की मौत हो जाती है। ऐसा किसी और के साथ न हो इसलिए दशरथ ने पत्नी को याद करते २२ सालों तक लगातार अकेले पहाड़ काट कर रास्ता बना दिया था।  निर्देशक केतन मेहता के लिए निश्चित रूप से दशरथ मांझी के पहाड़ तोड़ रास्ते बनाने के भागीरथी प्रयास और दिवंगत पत्नी को समर्पित प्रेरणा को एक स्क्रिप्ट का रूप देना काफी मुश्किल रहा होगा। मध्यांतर से पहले इसकी झलक भी दिखती है, लेकिन मध्यांतर के बाद फिल्म एक सूत्र में बंध जाती है। किसी क्षेत्र विशेष की सच्ची घटना को राष्ट्रीय स्तर पर दिखाने में दो प्रमुख समस्याएं आती हैं। एक वातारवरण की और दूसरी भाषा की। वातावरण की समस्या तो संबंधित स्थल पर जाने से हल हो जाती है, लेकिन भाषा की समस्या अंत तक खतरा बनी रहती है। निर्देशक यदि वही भाषा पकड़ता है, तो राष्ट्रीय स्तर पर संप्रेषण में बाधा आएगी और अगर छोड़ता है, तो वातावरण से सामंजस्य कैसे बैठेगा। इस खतरे से '
मांझी..' भी नहीं बच पायी है। केतन मेहता ने पूरी शूटिंग उसी घटना स्थल पर करके पर्दे पर सच्चाई का आभास तो करा दिया। लेकिन भाषा असंगत रह गयी।
'मांझी...' पूरी तरह से दशरथ मांझी के किरदान में नवाजुद्दीन सिद्दीकी की फिल्म है। पहले सीन में ही पहाड़ के समक्ष पत्नी के विरह में दशरथ की हृदयविदारक ललकार चौंकन्ना कर देती है। अपनी धुन के पक्के एक मूडी युवा प्रेमी से लेकर संवेदनशील बुजुर्गावस्था तक की दशरथ मांझी की जीवटता के टेंपो को नवाजुद्दीन ने पर्दे पर बरकरार रखा है। फल्गुनिया के रोल मेंराधिका आप्टे उस आदिवासी क्षेत्र की आबो हवा में घुलमिल सी गयी हैं। कथा विस्तार में फिल्म जमींदारी प्रथा और छूआछूत जैसे तत्कालीन सामाजिक मुद्दों को भी छूते हुए निकलती है। इसके लिए पात्रों का चयन भी सार्थक साबित हुआ है। लेकिन दशरथ मांझी के पूरे अभियान के बीच कई बार शाहजहां और ताज महल का जिक्र खटकता है। क्याआप मांझी के कामको शाहजहां का अनुकरण दिखाना चाहते हैं? अगर इन दोनों के कार्यों का विश्लेषण किया जाए, तो दशरथ मांझी का प्रेम कहीं ज्यादा पवित्र और सार्वभौमिक है। उसने अपने प्रेम का सामुदायीकरण कर दिया है। दूसरे ताज महल को हजारों कारीगरों ने बनाया था, जबकि दशरथ ने २२ साल में यह रास्ता अकेले बनाया था, जिसे बाद बिहार सरकार ने ३० साल में सड़क में परिवर्तित कर उसका नाम 'दशरथ मांझी पथÓ रखा।

स्टार : तीन

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