Tuesday, April 29, 2014
Friday, April 25, 2014
Monday, April 7, 2014
बिल्कुल मसाला फिल्म है 'मैं तेरा हीरो Ó
स्टार : तीन
यदि आप फिल्म देखते कार्य और कारण में विश्वसनीयता की अपेक्षा किये बगैर और अपना दिमाग लगाये बगैर निर्देशक डेविड धवन जो दिखा रहे हैं, उसे वैसे ही देखते रहने के लिए तैयार हैं, तो निश्चित मानिये 'मैं तेरा हीरोÓ आपको बोर नहीं करेगी। फिल्म में कहानी के अलावा सबकुछ है। नृत्य और गानों की ऐसी रवानी, जो अपनी रौ में सबको बहा ले जाये, जहां क्लास वगैरह के पैमाने बेमतलब हो जाते हैं। कर्णप्रियता और थिरकन अपनी मोहपाश में सबकों बांध लेते हैं। इस मामले में एक समय गोविंदा का कॉपी राइट लगता था। कहने का तात्पर्य है, ' मैं तेरा हीरोÓ बिल्कुल मसाला फिल्म है। यहां भगवान भी बोलते हुए दिखते हैं।
पढ़ाई में बार-बार फेल होने वाले मस्तमौला सीनू (वरुण धवन )से उसके अध्यापक सहित पूरा शहर परेशान है। सीनू पढ़ाई के लिए बंगलौर जाता है, जहां वह उसी कॉलेज की छात्रा सुनयना(इलियाना डिक्रूज) पर मर मिटता है। सुनयना का एक तरफा प्रेमी है खूंखार डीसीपी अंगद (अरुणोदय सिंह)है, जिसके डर से कॉलेज का कोई लड़का सुनयना के पास भी नहीं फटकता। सुनयना को पाने सीनू और अंगद की कोशिश दिखाते फिल्म में सुनयना के अपहरण के साथ एक नया मोड़ आता है। सीनू की जांबाजी की कायल आयशा (नर्गिस फाखरी) सीनू से शादी करना चाहती है। उसकी इच्छा पूरी करने उसका गैंगस्टर पिता विक्रांत(अनुपम खेर)सुनयना का अपहरण करवा लेता है। अंगद और सीनू विक्रांत के यहां पहुंचते हैं, जहां विक्रांत, सीनू और अंगद में शह और मात का खेल चलता है और फिल्म का सुखांत होता है। फिल्म के इसी हिस्से में सबसे ज्यादा हास्य उड़ेला गया है।
मासूम से दिखते वरुण धवन की चपलता दर्शक का मनोरंजन करती है। उसकी मासूमियत इतनी शुद्ध लगती है कि एक सीन में जब वह खुद के बड़े हरामी होने की बात बताता है, तभी संबंधित पात्र के साथ-साथ दर्शक को भी उसकी हरामियत पर ध्यान जाता है। पहले हाफ में खलनायक से मध्यांतर बाद साइड हीरो लगते अरुणोदय सिंह बेहद प्रभावित करते हैं। इलियाना और नर्गिस के हिस्से नाच-गाने के अलावा कुछ था ही नहीं, जिसमें दोनों ने अपने को खूब दिखाया है। अनुपम खेर, सौरभ शुक्ला और राजपाल यादव के कारण ही हास्य की मंशा सफल लगती है।
यदि आप फिल्म देखते कार्य और कारण में विश्वसनीयता की अपेक्षा किये बगैर और अपना दिमाग लगाये बगैर निर्देशक डेविड धवन जो दिखा रहे हैं, उसे वैसे ही देखते रहने के लिए तैयार हैं, तो निश्चित मानिये 'मैं तेरा हीरोÓ आपको बोर नहीं करेगी। फिल्म में कहानी के अलावा सबकुछ है। नृत्य और गानों की ऐसी रवानी, जो अपनी रौ में सबको बहा ले जाये, जहां क्लास वगैरह के पैमाने बेमतलब हो जाते हैं। कर्णप्रियता और थिरकन अपनी मोहपाश में सबकों बांध लेते हैं। इस मामले में एक समय गोविंदा का कॉपी राइट लगता था। कहने का तात्पर्य है, ' मैं तेरा हीरोÓ बिल्कुल मसाला फिल्म है। यहां भगवान भी बोलते हुए दिखते हैं।
पढ़ाई में बार-बार फेल होने वाले मस्तमौला सीनू (वरुण धवन )से उसके अध्यापक सहित पूरा शहर परेशान है। सीनू पढ़ाई के लिए बंगलौर जाता है, जहां वह उसी कॉलेज की छात्रा सुनयना(इलियाना डिक्रूज) पर मर मिटता है। सुनयना का एक तरफा प्रेमी है खूंखार डीसीपी अंगद (अरुणोदय सिंह)है, जिसके डर से कॉलेज का कोई लड़का सुनयना के पास भी नहीं फटकता। सुनयना को पाने सीनू और अंगद की कोशिश दिखाते फिल्म में सुनयना के अपहरण के साथ एक नया मोड़ आता है। सीनू की जांबाजी की कायल आयशा (नर्गिस फाखरी) सीनू से शादी करना चाहती है। उसकी इच्छा पूरी करने उसका गैंगस्टर पिता विक्रांत(अनुपम खेर)सुनयना का अपहरण करवा लेता है। अंगद और सीनू विक्रांत के यहां पहुंचते हैं, जहां विक्रांत, सीनू और अंगद में शह और मात का खेल चलता है और फिल्म का सुखांत होता है। फिल्म के इसी हिस्से में सबसे ज्यादा हास्य उड़ेला गया है।
मासूम से दिखते वरुण धवन की चपलता दर्शक का मनोरंजन करती है। उसकी मासूमियत इतनी शुद्ध लगती है कि एक सीन में जब वह खुद के बड़े हरामी होने की बात बताता है, तभी संबंधित पात्र के साथ-साथ दर्शक को भी उसकी हरामियत पर ध्यान जाता है। पहले हाफ में खलनायक से मध्यांतर बाद साइड हीरो लगते अरुणोदय सिंह बेहद प्रभावित करते हैं। इलियाना और नर्गिस के हिस्से नाच-गाने के अलावा कुछ था ही नहीं, जिसमें दोनों ने अपने को खूब दिखाया है। अनुपम खेर, सौरभ शुक्ला और राजपाल यादव के कारण ही हास्य की मंशा सफल लगती है।
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