Friday, June 19, 2015

फिल्म 'एबीसीडी-२' की समीक्षा - कमजोर नींव पर आकर्षक नक्काशी है 'एबीसीडी-२'


किसी भी फिल्म की बुनियाद कहानी ही होती है, जिसके आधार पर फिल्म के अन्य पहलू आकार लेते हैं। लेकिन 'एबीसीडी-२'  में कहानी की कमी है। इससे डांस स्पर्धाओं में वरुण धवन और श्रद्धा कपूर सहित सभी कलाकारों का लुभावन डांस भी ऊपरी नक्काशी बनकर रह गया है। निर्देशक रेमो डिसूजा ने पूरा ध्यान केवल कोरियोग्राफी पर लगा रखा है। भव्य सेट से लेकर लाइटिंग व्यवस्था तक से इसका स्पष्ट आभास होता है। फिल्म में वरुण और श्रद्धा के रोमांटिक दृश्यों की अपेक्षा रहती है, लेकिन रेमो रोमांस, राष्ट्र प्रेम, जज्बा, स्वाभिमान और भावुकता को टुकड़ों में छूकर आगे बढ़ गये हैं। इससे ये सारे प्रसंग सतही रह गये हैं और दिलो दिमाग पर अपना असर नहीं छोड़ पाते हैं।
एक तो कमजोर कहानी, दूसरे १५४ मिनट की एक के बाद एक होती नृत्य प्रतियोगिता वाली फिल्म को लेकर कोई एकाग्र कैसे हो सकता है। अभिनय की बात करें तो प्रभु देवा भले ही अच्छे डांसर हैं लेकिन पर्दे पर डांस गुरु की भूमिका निभाते नहीं जमे। उनके चेहरे पर अधिकांश एक ही भाव दिखते रहे। बाकी कलाकारों को अभिनय से ज्यादा अपने नृत्य कौशल को प्रदर्शित करना था, जिसे उन्होंने अंजाम भी दिया है। वाकई कलाकारों के नृत्य पर लगे श्रम को यदि कहानी का सहयोग मिल गया होता, तो देखना कुछ मनोरंजक लगता। छोटे से रोल में आयीं लोरेन गॉटलिब प्रभावित कर गयीं। इसी तरह स्पेशल अपीरियंस में टिस्का चोपड़ा और पूजा बत्रा हवा के झोंके का अहसास करा गयी।

स्टार - दो  

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