Saturday, January 23, 2016

एक मुलाकात जावेद जाफरी के साथ


'लव फॉरएवर' की सबसे महत्वपूर्ण बात जो ये फिल्म करने का कारण बनी ?
—कहानी क्या है, आपका रोल क्या है, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर कौन है? ये चार बाते ही कोई फिल्म साइन करने से पहले महत्वपूर्ण होती है। यही मैंने भी किया। इसकी कहानी कोई बिल्कुल नयी चीज नहीं लेकर आ रही है, हां इंट्रेस्टिंग है। मेरा रोल एक रॉ एजेंट का है। उसे प्राइम मीनिस्टर की बेटी की हिफाजत के लिए भेजा गया है। वहां उस लड़की की सुरक्षा में एक लेडी भी है और वो इस रॉ एजेंट की पूर्व पत्नी है। बात-बात में दोनों में नोंक-झोंक होती रहती है। लेकिन दोनों का एक ही मिशन है, तो साथ काम भी करना है। ये बात मुझे काफी जमी और मैं यह फिल्म करने को तैयार हो गया।

कोई एक समय सीमा तय कर प्यार नहीं करता।  फिर 'लव फॉरएवर' 'टाइटल का क्या औचित्व् ?  
- देखिये भावनाओं में कोई लॉजिक नहीं होता। आप कई गानों में देखेंगे जैसे ' तेरी आंखों के सिवाय दुनिया में रखा क्या है' अब कोई इसका हू बू हू मतलब निकाल कर सवाल कर सकता है, लेकिन यह एक अहसास को व्यक्त करने के लिए लिखी गई लाइन है। इसी तरह 'लव फॉरएवर' टाइटल भी प्यार के जज्बात को व्यक्त करने के लिए रखा गया है।

मिमिक्री में आपकी एक पहचान है।  आपके ख्याल से इसके लिए ख़ास योग्यता क्या होनी चाहिए ?
- ये बिल्कुल पॉवर ऑफ ऑब्जर्वेशन से जुड़ा हुआ विषय है। मैंने केवल मिमिक्री ही नहीं की है, बल्कि देश की कई भाषाओं में काम किया है और उस दौरान को मैंने बारीकी से समझा है। ये समझना पड़ता है कि कौन सा किरदार कैसे बोलेगा, कैसेउठेगा-बैठेगा।  हमारे यहां पता नहीं किसने ये गलतफहमी ला दी कि ये लीड एक्टर हैऔर ये कैरेक्टर एक्टर। अरे भाई लीड एक्टर भी तो एक कैरेक्टर ही होता है। कहना तो एक्टर और सपोर्टिंग एक्ट चाहिए। मेरी कोशिश हमेशा बनने की रहती है। 

आप बच्चों के शो में जज थे। कभी निगेटिव कमेंट करने से पहले मन में बच्चों की भावनाओं को लेकर डर रहा ?
-वुगी-वुगी शो १७ साल चला। हमने इस मामले में काफी बैलेंस रखा। हमेशा कोशिश रही कि किसी का इन्सल्ट न होने पाये। हमने जिसको भी शो में बुलाया, उन्हें प्यार और सम्मान दिया। अगर कभी निगेटिव बातें भी कहनी थी, तो हमने समझाने के अंदाज में कहा।

  आजकल माँ -बाप अपने सपने अपने बच्चों के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं। आपने तो नजदीक से देखा होगा। क्या कहेंगे ?
- ये बहुत डेंजरस सोच है। आपने बिल्कुल सही कहा कि आज मां-बाप अपने सपने अपने बच्चों के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं। आपको बताऊं आज ज्यादातर लोग चकाचौंध से चौंधियाए हुए हैं। वो ग्लैमर के आकर्षक में इतने फंस चुके हैं कि इसी कल्पना में जीने लगते हैं कि मेरा बेटा टीवी पर आएगा, एड में दिखेगा, उसे काफी फेम मिलेगी। कई बार मैंने देखा कि एक छोटी सी बच्ची आती है और किसी आइटम गर्ल की मूवमेंट करती है। मैं तो तुरंत वहीं टोक देता हूं कि यार ये इस बच्ची से क्या करवा रहे हो? इसका बचपना मत छीनो। 

हिंदी सिनेमा में आपने  लम्बा समय दिया है। कभी लगा कि यहाँ जो मुकाम आपका होना चाहिए था वो नहीं मिला ? 
- मैं बहुत कुछ कर सकता था, अभी भी काफी कर सकता हूं। लेकिन मुझे मौके नहीं मिले। इस फिल्म इंडस्ट्री में ९५ प्रतिशत किस्मत का सिक्का चलता है। सलमान खान की पहली फिल्म नहीं चली, लेकिन 'मैंने प्यार कियाÓ के हिट होने के बाद उनकी निकल पड़ी।अजय देवगन को देखकर कइयों ने कहा अरे यार ये हीरो के रूप में नहीं चलेगा।लेकिन उनकी फिल्म हिट हो गयी और वो आज कहां है ये सभी देख रहे हैं। हमारे देश में कई बहुत अच्छे कलाकार हैं, लेकिन उनकी किस्मत उनके साथ नहीं है, तो वो गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। 'शोले' चल गई तो लोग शम्भा को भी जान गये। 

आपने कॉमेडी, मिमिक्री और स्टेज शो सहित क्षेत्रों में काम किया। आपके लिए आसान क्या है ? 
-मैं अपने आपको एंटरटेनर मानता हूं। आप मेरी फिल्मे देखकर मेरी रेंज जान जाएंगे। मुझे किसी भी रोल में डाल दीजिए मैं उसमें ढल जाऊंगा। मेरा अपने काम को लेकर एक कॉन्फिडेंस है, ओवर कॉन्फिडेंस नहीं। फिल्म चली ना चली, लेकिन मेरे काम पर किसी ने उंगली नहीं उठायी। 

आज की फिल्मों में बदलाव क्या देख रहे हैं ?
-हमारी फिल्में पहले सर्कस की तरह थी। जैसे एक जोकर, एक लड़का, एक लड़की, एक विलेन, एक घोड़ा एक फार्मूले की तरह आते थे। लेकिन आज फिल्मे कहानी के अनुसार चलने लगी हैं। पहले कॉमेडी अलग होती थी, परंतु आज कहानी का हिस्सा बनकर आ रही है। दूसरे आज विकी डोनर और मसान जैसी फिल्में चल रही हैं। लेकिन अभी हमारे यहां इनके लिए मार्केट नहीं बन पाया है। इसका कारण भी है। फिल्म एंटरटेनमेंट का माध्यम है। सबके रोजमर्रा की जिंदगी में समस्याएं हैं, हर जगह तनाव है। लोग इससे बचकर फिल्म में एक खूबसूरत मायावी दुनिया देखने जाते हैं, जिसमें थोड़ी देर के लिए वो अपना गम छोड़कर उसी में खो जाते हैं। अगर फिल्म में भी वही भूख और पीड़ा दिखे तो वो पैसे खर्ज कर क्यों देखें। वो तो आस-पास ही पड़ा है। 

आपका राजनीति में जाना क्या भावनाओं का क्षणिक आवेग था या अब भी जा सकते हैं ?
-मुझे लगा कि एक आदमी सच्चाई के साथ सांप्रदायिकता के खिलाफ आवाज उठा रहा है, तो मुझे उसका साथ देना चाहिए इस लिए चुनाव लड़ गया। वहां मेरा मुकाबला भाजपा के राजनाथ सिंह, कांग्रेस की रीता बहुगुणा और सपा एवं बसपा जैसी मजबूत पार्टियों से रहा। ऐेसे में मुझे जितने वोट मिले वो काफी मायने रखते हैं। क्योंकि एक तो मैं वहां अचानक गया था, दूसरे मेरी पार्टी भी नयी थी। अब मैं सीधे राजनीति में नहीं जाने वाला हूं। हां एक सपोर्टर के रूप में रहूंगा।