Tuesday, January 2, 2024

 पराक्रमी हिन्दुओं को भूले-भटके समझते हैं कांग्रेसी- वीर सावरकर


06 जनवरी को स्वातंत्र्यवीर सावरकर का मुक्ति शताब्दी दिवस है। वी.डी. सावरकर भारत की आजादी की लड़ाई के एक ऐसे हस्ताक्षर हैं, जिन्होंने पराधीनता की रात में स्वाभिमान की ज्योति जलाई।  वीर सावरकर के साहस ने स्वतंत्रता की लड़ाई को एक नई दिशा दे दी। सावरकर ही वो पहले नेता थे, जिन्होंने भारत का लक्ष्य पूर्ण राजनैतिक स्वतंत्रता बताने का साहस दिखाया और इसकी प्राप्ति के लिए आंदोलन भी छेड़ा। उनके अदम्य साहस के कारण ही लोगों ने उनके नाम के साथ वीर की उपाधि जोड़ दी। वीर सावरकर एक निष्ठावान स्वतंत्रता सेनानी, कुशल राजनीतिज्ञ और विद्वान लेखक थे। हिन्दू राष्ट्रवाद के वे प्रमुख जननायक थे। राजनीति और हिन्दुत्व के बाबत वे अपनी राय बेलाग- लपेट व्यक्त करते थे। उनके कुछ ऐसे ही विचार यहां प्रस्तुत हैं-


हिंदू प्रतिनिधि न चुनने की भूल प्राण घातक बनी

यथार्थ स्थिति का चित्रण करते वीर सावरकर ने कहा था, ''संपूर्ण देश में मुसलमानों के हित रक्षार्थ दंगे-फसाद हुए किंतु उसका प्रतिकार करने के लिए एक भी हिंदू आगे नहीं आया। उसी प्रकार हिंदू प्रतिनिधि न चुनने की यह भूल हिंदुओं के लिए प्राण घातक बनी। उदाहरण के लिए पंजाब और बंगाल के मुसलिम मंत्रियों के कृत्य देखिए। वे सरेआम भरे बाजार मुसलमानों का पक्ष लेकर हिंदुओं को तंग करने की धमकियाँ दे रहे हैं। इसके विपरीत संयुक्त प्रदेश (वर्तमान उत्तर प्रदेश) के कांग्रेसी हिंदू मंत्री हिंदुओं की बात नहीं सुनते। कांग्रेस के प्रतिनिधियों को सरेआम यह कहने में भी लज्जा आती है कि हम हिंदू हैं। इतना ही नहीं, स्वयं को हिंदू कहलाना वे अराष्ट्रीय समझते हैं। यदि वे प्रामाणिक रूप से ऐसा सोचते हैं तो हमारा यही कहना है कि वे चुनाव के समय भी हिंदू मतदाताओं के पास हिंदू होने के नाते से वोट न माँगें। इस इच्छुक को-जो चुनाव के पूर्व स्वयं को हिंदू कहलाता है और निर्वाचित होने पर अपना हिंदुत्व नकारता है ।''


पराक्रमी हिन्दुओं को भूले-भटके समझते हैं कांग्रेसी

हिंदू सभा, आर्यसमाज, हिंदू संघटन जैसे शब्द भी कांग्रेसियों को तिरस्करणीय लगते हैं। वे कहते हैं कि आर्यसमाज के कारण ही मुसलमान चिढ़ते हैं। वे शिवाजी, राणा प्रताप तथा अन्य पराक्रमी हिंदू देशभक्तों को भूले-भटके समझते हैं। और कहते हैं कि मुल्ला तथा मौलवियों ने मुसलमानी शब्दों का प्रभाव वृद्धिंगत करके हिंदुस्थानी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। ये मंत्री नागरी लिपि का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि मुसलमानों को वह अप्रिय है। मुसलमानी भावना का आदर करने के लिए उन्होंने 'वंदेमातरम्' राष्ट्रगीत काट-छाँट दिया और हिंदुओं की भावनाओं को कुचल डाला। इस प्रकार हिंदू मतदाताओं द्वारा निर्वाचित कांग्रेसी प्रतिनिधि हिंदू मतदाताओं की भावनाएँ पैरों तले रौंदकर जिन्ना, हक प्रभृतियों को आश्वस्त कर रहे हैं कि वे गोवधबंदी कदापि नहीं करेंगे। 


कांग्रेस की दुष्ट प्रवृति से रक्षा का उपाय

कांग्रेस की तुष्टिकरण का समाधान बताते उन्होंने कहा, ''कांग्रेस की इस दुष्ट प्रवृत्ति से रक्षा करने का एक उपाय है। वह यह कि हिंदू उन्हें अपना वोट न दें और अपने प्रतिनिधि के रूप में उन्हें निर्वाचित न करें। इसके विपरीत जो प्रकट रूप में एक संघटित पक्ष के रूप में हिंदू हित की सुरक्षा का आश्वासन देते हैं उस हिंदू महासभा इच्छुकों को अपने वोट दें। कांग्रेस में कुछ लोग भले हैं परंतु उन लोगों की भलाई पर गौर न करते हुए हम कांग्रेस की यह हिंदू विघातक नीति देखें जिससे वे बँधे हुए हैं और उससे हिंदू हित की रक्षा के लिए हिंदू सभा को मत दें।''


हिन्दू ही कांग्रेस को नीचे लाएंगे

वीर सावरकर की दूरदर्शिता ही थी जब उन्होंने कहा कि हिंदू सभा सदस्यों को एक बात बताता हूँ। इस चुनाव में भले ही आपको सफलता न मिले तथापि धीरज न खोते हुए अगले चुनाव में लड़ने की तैयारी करें ताकि अगले चुनाव में वे हिंदू मंत्रिमंडल बना सकेंगे इसमें मुझे रत्ती भर भी संदेह नहीं। हिंदू मतदाताओं ने ही कांग्रेस को सत्ताधीश बनाया है। परंतु कांग्रेस द्वारा हिंदुओं का विश्वासघात करने से हिंदू ही उसे नीचे खींचेंगे और शक्तिशाली हिंदू मंत्रिमंडल स्थापित कर सकेंगे।


कांग्रेस हिंदुओं की प्रतिनिधि नहीं

कांग्रेस की ओर से प्रायोजित एक गोलमेज परिषद के संदर्भ में वीर सावरकर ने कहा था,  ''कांग्रेस को हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार नहीं है। यद्यपि कांग्रेस हिंदू मत पर निर्वाचित हुई है तथापि उसने हिंदू हित रक्षा का भरोसा कभी भी नहीं दिया। इसके विपरीत यह कांग्रेस, जो मुसलमानों की अनेक अन्यायी माँगें मान्य करती है, हिंदुओं की एक भी न्याय सम्मत माँग स्वीकार नहीं करती। इसीलिए मैं स्पष्ट शब्दों में कहता हूँ कि ब्रिटिश प्रशासन और मुस्लिम लीग, उसी तरह कांग्रेस और मुसलिम लीग अथवा इन तीनों में जो भी कुछ करारनामे होंगे वे हिंदुओं के लिए बंधनकारक न हों। इस तरह की परिषदों में एक समान अधिकारिणी संस्था के रूप में हिंदू महासभा को आमंत्रित किया जाए और वही प्रस्ताव हिंदुओं के लिए बंधनकारक होंगे जो वह स्वीकार करेगी।''


अपने हाथ में लेनी होगी राजसत्ता

 १ अप्रैल, १९४० के दिन वीर सावरकर ने महाराष्ट्रीय हिंदू सभा को सबल एवं कार्यक्षम बनाने की दृष्टि से एक पत्रक निकाला, जो सभी शाखाओं का मार्गदर्शक है। उसका आशय इस प्रकार है-

"हिंदू महासभा की कार्यशक्ति में वृद्धि करते हुए हिंदू राष्ट्र की रक्षा की शक्ति उसमें लाने के लिए आज सबसे प्रमुख एवं आवश्यक बात है कि आज जो राज्यसत्ता प्राप्त होगी उसे हाथ में ले लें। हिंदुओं के न्याय अधिकार रक्षण का व्रत प्रकट रूप से धारण करते हुए चुनाव में खड़े हिंदू संघटक पक्ष को यदि प्रत्येक हिंदू स्त्री-पुरुष मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करे तो हिंदुस्थान के कम-से-कम सात-आठ प्रांतों में हिंदू संघटक पक्ष के हाथ में प्रादेशिक सत्ता आएगी और आज अनेक अन्याय-अत्याचारों तथा दंगा-फसादों से अहिंदुओं द्वारा हिंदू जनता जो उत्पीड़ित है उसमें से नब्बे प्रतिशत हिंदुओं की मुक्ति लगे हाथ प्राप्त की जा सकती है। हिंदू राष्ट्र में नया जीवन और प्रबल आत्मविश्वास का संचार होगा। हिंदुओं का बदला हुआ दबदबा संपूर्ण हिंदुस्थान भर अवश्य होगा।


कट्टर हिंदू संघटक पक्ष को ही करें वोट 

वीर सावरकर कहते थे कि जिस तरह और जब तक मुसलमान मतदाता कट्टर मुसलमान को ही अपना मत देता है, उसी तरह हिंदू मतदाता को भी कट्टर हिंदू संघटक पक्ष को ही अपना वोट देना चाहिए। अन्यथा हिंदुओं का प्रबल अभ्युत्थान होना असंभव है। सौभाग्यवश हिंदू मतदाता संघ की समझ में यह सूत्र आ गया है।

-अश्वनी राय