विरह का बादल बहा दे काजल
पलकों की छतरी लगा दो ना
तरसे नयनवा मोरे सजनवा
आकर रूप दिखा दो ना
रूत बसंती आँख में सावन
तुम बिन सूना सूना आँगन
चंचल हवाएं लचकती डाली
भंवरा चूमे आली आली
दर्दे जवां में ऐसी फिजा में
आओ या मुझको बुला लो ना
रात कटे आँखों में हम दम
भाये ना भोर का भीगा मौसम
आस लगाये सबसे लडूंगी
सपने मिलन की मैं बूनूंगी
कोई हँसे ना कुछ भी कहे ना
आकर रीति निभा दो
पलकों की छतरी लगा दो ना
तरसे नयनवा मोरे सजनवा
आकर रूप दिखा दो ना
रूत बसंती आँख में सावन
तुम बिन सूना सूना आँगन
चंचल हवाएं लचकती डाली
भंवरा चूमे आली आली
दर्दे जवां में ऐसी फिजा में
आओ या मुझको बुला लो ना
रात कटे आँखों में हम दम
भाये ना भोर का भीगा मौसम
आस लगाये सबसे लडूंगी
सपने मिलन की मैं बूनूंगी
कोई हँसे ना कुछ भी कहे ना
आकर रीति निभा दो
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