Monday, February 9, 2015

फिल्म समीक्षा : 'षमिताभ'


स्टार : तीन
'षमिताभ' का मूल्यांकन करते यदि अमिताभ बच्चन के अभिनय को सामने रखकर विचार करें, तो फिल्म की रेटिंग काफी ऊपर रखने की इच्छा होगी, लेकिन अगर बिग बी को परे रखकर पूरी फिल्म पर नजर दौड़ायें तो रेटिंग स्तर एक पर आ जाएगी। बिग बी का जिवंत अभिनय देखने के लिए २.३० घंटे का समय भी झेला जा सकता है। क्योंकि यह अभिनय एक अविस्मरणीय याद का हिस्सा बन जाएगा।
निर्देशक आर. बाल्कि ने केवल चाहत के सहारे सपने के साकार होने की कहानी दिखायी है। बचपन से ही मूक दानिश (धनुष) फिल्मों में हीरो बनने का ख्वाब लिये फिरता है। वह इगतपुरी से मुंबई आ जाता है। यहां उसके संघर्ष को सहायक निर्देशक अक्षरा (अक्षरा हसन) का सहयोग मिलता है। मुंबई कभी हीरो बनने आये असफल पियक्कड़ अमिताभ सिन्हा (अमिताभ बच्चन) की आवाज के उपयोग से मूक दानिश सुपर स्टार बन जाता है। आगे इस सफलता में अपनी-अपनी भूमिका के योगदान को लेकर दोनों के अहम् टकराने से अलग होने और फिर एक होने की कहानी है।
यद्यपि बाल्की एक नई कहानी के साथ आये हैं। लेकिन खटकने वाली बात उनके मुख्य हीरो के विकासक्रम को लेकर आती है। इस हीरो की परिभाषा किसी भी संस्कृति के पैमाने पर देना मुश्किल है।   यही कारण है कि दानिश को पर्दे पर साकार करते धनुष की सफल कोशिश भी कहानी में दिलचस्पी नहीं जगा पाती। क्योंकि दानिश का चरित्र चित्रण ही खोखला है। मध्यांतर के बाद तो कुछ दृश्यों में फिल्म बोझिल लगती है और ध्यान इधर-उधर भटकने लगता है।  ७२ की उम्र में भी चुस्ती- फुर्ती से भरपूर अमिताभ बच्चन की जिंदादिली ही है कि ध्यान पुन: फिल्म का कायल हो जाता है। अपनी पहली ही फिल्म में अक्षर हसन अच्छी लगी हैं। फिल्म के गीत-संगीत अच्छे हैं।        

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