अश्वनी राय
सामाजिक व्यवहार का प्रमुख आधार संपर्क भाषा ही होती है, जिसके जरिए विचारों की यात्रा होती है. महाराष्ट्र के प्राथमिक विद्यालयों में त्रिभाषा सूत्र के अंतर्गत हिंदी की अनिवार्यता का मुद्दा तो राज्य सरकार ने हल कर दिया, लेकिन हिंदी बोलने को लेकर एक व्यक्ति की पिटाई से इस विवाद का रूप बदल गया. मुंबई में हिंदी भाषा का विरोध करने वाले इसे मराठी अस्मिता और पहचान के लिए खतरा बताते हैं. निश्चित रूप से अपने प्रांत की अस्मिता बचाए रखना हर एक का कर्तव्य होना चाहिए. लेकिन हिंदी विरोधियों को संपर्क भाषा के रूप बोली जा रही हिंदी से महाराष्ट्र को अब तक किस तरह का नुकसान हुआ है, इसका पैमाना भी सामने रखना चाहिए. पिछले साल ही केंद्र सरकार ने मराठी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया. इससे स्पष्ट है कि मराठी भाषा काफी सशक्त, समृद्ध और प्राचीन है. इसकी विरासत अप्रतिम रूप में गौरवशाली रही है. फिर संपर्क भाषा के रूप में हिंदी के व्यवहार से मराठी भाषा के अस्तित्व पर संकट कैसे आ सकता है? इसे हिंदी विरोधियों को स्पष्ट करना चाहिए. देश के स्वतंत्रता आंदोलन के समय हिंदी पूरे देश को जोड़ने का माध्यम रही और आज भी पूरे देश में संवाद करने के लिए हिंदी का कोई विकल्प नहीं है. क्योंकि 2011 की जनगणना के अनुसार देश में बोली जाने वाली भाषाओं में दूसरे नंबर पर बांग्ला 8.03% और तीसरे स्थान पर मराठी 6.86% हैं. ये दोनों भाषाएं हिंदी 43.63% से काफी पीछे हैं. प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी पढ़ाने की अनिवार्यता के परिणामों की अनुकूलता-प्रतिकूलता की बात तो कुछ हद तक समझी भी जा सकती है. लेकिन दो विभिन्न भाषी लोगों के बीच संपर्क भाषा के रूप में हिंदी के प्रयोग से मराठी संस्कृति पर आघात का तर्क समझ पाना मुश्किल है. स्थानीय भाषा न जानने से हर व्यक्ति को अपनी प्रगति में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. इसके लिए जबरदस्ती करने की जरूरत नहीं है.
हिंदी से सबसे अधिक प्रभावित भोजपुरी
देश में हिंदी से सबसे अधिक प्रभावित होने वाली भाषा भोजपुरी है. कस्बे और शहर ही नहीं आज गांवों से भी भोजपुरी के बहुत सारे शब्द दैनिक व्यवहार से गायब होते जा रहे हैं. भोजपुरी शैली में हिंदी के शब्द अपनी जगह बनाते जा रहे हैं. भोजपुरी तो कभी स्कूल-कॉलेज की भाषा भी नहीं रही. फिर भी भोजपुरी संस्कृति आकर्षक बनी हुई है. इसका प्रमाण निरंतर बढ़ते भोजपुरिया टीवी चैनल दे रहे हैं. ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि संपर्क भाषा के रूप में हिंदी से मराठी भाषा और संस्कृति को कैसे खतरा हो सकता है?
सरकारी प्रोत्साहन
महाराष्ट्र देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां हिंदी सहित कई पर प्रांतीय भाषाओं के संवर्धन के लिए राज्य के सांस्कृतिक मंत्रालय के अधीन साहित्य अकादमियों का गठन किया गया है. इसके तहत प्रतिवर्ष विभिन्न भाषाओं के रचनाकारों को उनकी कृतियों के लिए पुरस्कार स्वरूप अच्छी नकद राशि प्रदान की जाती है. इसके अलावा राज्य सरकार की तरफ से कमजोर आर्थिक स्थिति वाले प्रतिभाशाली रचनाकारों की पुस्तकों के प्रकाशन का प्रावधान भी किया गया है. देश के संविधान में भी हिंदी के प्रसार की बात कहते हुए इसे देश में राजभाषा का दर्जा दिया गया है. गौरतलब है कि मराठी की लिपि भी हिंदी की तरह देवनागरी ही है और ये दोनों भाषाएं संस्कृत से ही निकली हुई हैं.
सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक पक्ष
महाराष्ट्र की सबसे प्रमुख सांस्कृतिक पहचान गणेशोत्सव आज पूरे भारत में फैल चुका है. इस सांस्कृतिक विस्तार के वाहक न तो हिंदी का विरोध करने वाले दल रहे, न ही महाराष्ट्र की सरकार. अब लखनऊ में भी गणपति पूजा के दौरान 'गणपति बप्पा मोरया' की गूंज सुनाई देती है. ऐतिहासिक संदर्भों में छत्रपति शिवाजी महाराज का भव्य स्मारक यूपी और हरियाणा में वहां की सरकारों के सहयोग से बनाया जा रहा है. यूपी की योगी सरकार ने स्वातंत्र्य वीर सावरकर की जीवनी स्कूली पाठ्यक्रमों शामिल करने का प्रावधान किया. डॉ आंबेडकर की जन्मभूमि महाराष्ट्र और कर्मभूमि दिल्ली रही, लेकिन उनकी तस्वीरों को अपने पोस्टर-बैनर पर लगाकर दलित के नेतृत्व वाली पहली सरकार यूपी में बनी. यह संपर्क भाषा के जरिए विचारों की यात्रा का ही परिणाम रहा. इसलिए यह सभी को समझना होगा कि संपर्क भाषा भी एक संस्कृति है. एक राष्ट्र के अंदर इसे जन्म, कर्म और परिणाम क्षेत्र की सीमाओं में सीमित नहीं किया जा सकता.

