Thursday, July 26, 2012

उम्मीद

उम्मीद की ज्योति जलाकर 
अब गम का अँधेरा हर लेंगे
सपनों को गले लगाकर
अब गम का अँधेरा हर लेंगे
जो हुआ नहीं है दुनिया में 
वो आज यहाँ हम कर देंगे
हिम्मत से भरी इन बाँहों से मुश्किल का बोझ हटा देंगे
नामुमकिन के शब्द को हम इस दुनिया से ही मिटा देंगे
आफत से नैन लड़ाकर 
हर क्षण में मौज मनाकर
कुदरत का नज़ारा कर लेंगे
लाख बुरी हो यादें जहाँ की हमको नहीं सुनना गुनना 
हमको तो बश इतना पता है मंजिल दर मंजिल चढ़ाना 
नफ़रत की आग बुझाकर 
उलफत की नाव चलाकर
 खुशियों से समंदर भर देंगे
जो हुआ नहीं है दुनिया में
वो आज यहाँ हम कर देंगे

अश्वनी कुमार राय

2 comments:

  1. उम्मीद पर ही तो सारी दुनिया टिकी है।

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  2. नफ़रत की आग बुझाकर
    उलफत की नाव चलाकर
    खुशियों से समंदर भर देंगे
    जो हुआ नहीं है दुनिया में
    वो आज यहाँ हम कर देंगे।

    बहुत ही अच्छी कविता । आपके पोस्ट पर प्रथम बार आया हूं। मेरे पोस्ट "अतीत से वर्तमान तक का सफर" पर आपका हार्दिक अभिनंदन है।

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