प्रातःकाल में प्रकाशित इस फिल्म की समीक्षा. |
राहुल अपनी दादी को झांसा देने दादा जी की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए उनकी अस्थियां रामेश्वरम में प्रवाहित करने मुंबई से चेन्नई एक्सप्रेसपकड़ कल्याण में उतर जाने की योजना बनाता है, लेकिन कल्याण में उतर नहीं पाता। अगर हम मान लें कि मौजमस्ती पसंद राहुल में किसी की भावनाओं के प्रतिसंवेदनशीलता का अभाव है, तो अगले ही पल उसमें इतनी दरियादिली कहां से आ गई कि वह एक-एक करके मीना (दीपिका पादुकोण)और उसका पीछा करते उसके चचेरे भाइयों को छूटती गाड़ी पकड़वाने में सहयोग देते खुद उतरना ही भूल गया। और हां वह पागल भी नहीं है, क्योंकि उसे इस बात का पूरा अहसास है कि दादा-दादी के प्यार ने उसे कभी अपने मां-बाप की कमी नहीं महसूस होने दी। ऐसे में आपका दिमाग चकरा जाएगा, लेकिन आप इस राहुल की एक निश्चित परिभाषा नहीं दे पाएंगे।
कहानी के नाम पर दबंग पिता द्वारा अपनी मर्जी के खिलाफ शादी करा देने के डर से भागी मीनाकी मदद में आये राहुल के मुसीबतों में फंसने, सकुशल निकलने और दोनों में प्यार होने की बकवास है।फिल्म में दीपिका के लिए अधिकांश तमिल भाषा के संवाद बोलने और उससे अपने चेहरे के भाव-भंगिमा का सामंजस्य बिठाने जैसीकुछ चुनौतियां जरूर हैं, जिसमें वह सफल भी दिखती हैं। हास्य के लिए शाहरूख खान की हिट फिल्मों के संदर्भ का सहारा नये काम के प्रतिआत्मविश्वास की कमी को ही दिखाता है। ट्रेलर के दौरान बेहद प्रसिद्ध हुए संवाद 'कहां से खरीदी है ऐसी बकवास डिक्शनरी' फिल्म के बीच एक अच्छे संवाद के लोभमें थोपा गया संवाद लगता है। पूरी फिल्म में देखने लायक कुछ बेहद सुंदर लोकेशंसही हैं, जो दिल को बरबस ही लुभा लेते हैं। वर्ना दर्शकों के लिए तमिल भाषा की बहुलता के बीच पहेली बूझने जैसी स्थित है। एक -दो गाने अच्छे हैं।
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